बाज़ार के लिए महिलाओं का शरीर सिर्फ एक उत्पद है- प्रत्युष प्रशांत


मौजूदा दौर में यह अज़ीब सा विरोधाभास है, जिस वक्त देश नवरात्र में आदि शक्ति देवी दुर्गा के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर रहा है तो दूसरी तरफ मीटू अभियान सामाजिक जीवन में महिलाओं के सुरक्षा के सवाल पर संस्थाओं के पुरुषवादी व्यवहार को कटघरे में रखने की कोशिश हो रही है। कई महत्वपूर्ण पद प्रतिष्ठा पाने वाले व्यक्तियों ने नाम सोसल नेमिग के बाद जांच तक पदमुक्त होना पड़ा है। जाहिर है कि दुनिया भर में आधी आबादी से जुड़े मुद्दे हाशिए से उठकर केंद्र में अपनी ज़गह बना रही है, बहसें चल रही है।
परंतु, बाज़ार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि बाज़ार अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता। उसके लिए महिला शरीर और उससे जुड़ी संवेदना बा़ज़ार में उत्पाद को बेचने का ज़रिया भर है। पिछले साल आनलाईन उत्पाद बेचने वाली कंपनी अमेज़न पर एक ऐसा एशट्रे बेचा जा रहा था, जो स्त्रियों की गरिमा को बहुत अधिक ठेस पहुंचाने वाला और उनके प्रति यौन हिंसा की भावना को प्रोत्साहित करने वाला था। सोशल मीडिया पर उस एशट्रे का लगातार और बहुत अधिक विरोध होने के बाद ही अमेज़न ने उसे अपने डिस्प्ले लिस्ट से हटाया था।
लेकिन क्या इस घटना और उसपर आयी प्रतिक्रियायों से बाज़ार ने कोई सबक लिया? मानो, बाज़ार ने मान लिया है, क्या फर्क पड़ता है?  उसे महिलाओं के संवेदना के साथ खेलने का पूरा अधिकार है। क्योंकि दो दिन से क्लब फैक्ट्री (Club Factory), जो एक ऑनलाइन मार्केटिंग पोर्टल पर महिलाओं के अस्मिता को धूमिल करने का उपक्रम निसंकोच चल रहा है। क्लब फैक्ट्री (Club Factory)  एक ऑनलाइन मार्केटिंग
पोर्टल है, जिसकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। कल फेसबुक पर एक महिला साथी के स्टेट्स पर इसपर अपनी आपत्ति दर्ज  की। स्पॉन्सर्ड विज्ञापन पर मेरी भी नज़र गयी, तो जैसे एक झटका सा लगा। यह एक टीशर्ट का डिस्प्ले था। इसके फ्रंट पर जो इमेज छपी हुई है, वह निहायत ही आपत्तिजनक है। इसमें एक लगभग नग्न स्त्री देह के साथ एक सेक्शुअल एक्ट का इस तरह इस्तेमाल किया गया है, जिससे स्त्रियों को यौन दासी समझने की मानसिकता खूब अधिक प्रोत्साहित होगी। इस टीशर्ट के डिसक्रिप्शन में भी इसे मिस न्युट्रल प्रिंट मेल टीशर्ट कहा गया है। यानी स्त्री देह के रूप में एक ऐसी वस्तु जिसका स्वामित्व हासिल किया जा सकता है और जिसके साथ जो मन चाहे वह किया जा सकता है, उसपर किसी तरह की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
यह स्थिति तब है जब देश में अश्लीलता कानून आजादी के पहले से लागू है, 1860 में बने इस कानून को आज़ादी के बाद भी इस कानून को ज़्यों का त्यों  अपनाया लिया गया। अश्लीलता पर बने कानून के मुताबिक, अश्लीलता को प्रचारित करने के लिए 20 वर्ष या उससे कम आयु के व्यक्ति को अश्लील सामग्री, बेचना, किराए पर देना, वितरित करना या प्रदर्शित करना कानून जुर्म है, जिसके लिए जुर्माने से लेकर सज़ा तक का प्रावधान है। अदालत तक पहुंचे अश्लीलता के सवालों को हम आज भी सौ साल पुराने इसी कानून के ज़रिए हल करते हैं. समय के साथ भारतीय कानून ने अश्लीलता और भद्दे के बीच फर्क करना सीखा है और अश्लीलता अगर ‘हिंसक-उत्तेजना’ पैदा करे तो वो दंडनीय है। लेकिन अश्लीलता के सवाल का जवाब देना केवल अदालतों की ज़िम्मेदारी नहीं. हमारे और आपके ज़हन में उठा हर सवाल अगर अदालत जाकर हल हो, तो देश की चरमराई न्याय-व्यवस्था भरभराकर गिर पड़ेगी। यह कितना अज़ीब है कि जिस देश एम-एफ हुसैन को अश्लील पेन्टिग के बनाने के लिए देश से निर्वासित कर दिया, राजा रवि वर्मा को अश्लील पेंन्टिग बनाने के लिए कोर्ट के सामने चक्कर लगाने पड़े, उसी देश को महिलाओं पर आपत्तिजनक टी-शर्ट बेचने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
इस टीशर्ट को देखने के बाद मैं क्लब फैक्ट्री की साइट पर पहुंचा तो जहाँ मुझे कई और बेहद आपत्तिजनक टीशर्ट्स दिखीं। मसलन एक ऐसी टीशर्ट दिखी जिसपर एक स्त्री की नग्न छवि इस तरह उकेरी गयी है कि उसकी योनि एक प्याले का आभास देती है, जिसमें शराब उड़ेली जा रही है! मेरे ख़याल से इसमें निहित दुर्भावना को समझने के लिए अलग से व्याख्या की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। चिंता का विषय यह भी है कि ऐसी टीशर्ट्स न सिर्फ बेचीं जा रहीं बल्कि खूब खरीदी भी जा रही हैं, और जबरदस्त रेटिंग के साथ खूब पसंद भी की जा रही हैं। बाज़ार का स्त्री की गरिमा के प्रति विरोधी रवैया ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। पूरी निर्लज्जता और ढिठाई के साथ नए-नए सामान और नए-नए तरीके इज़ाद किये जा रहे हैं। जिस समाज में खुले आम ऐसी चीज़ें बेचीं और खरीदी जा रही हों वहाँ एक जिंदा स्त्री के प्रति अच्छे रवैये या मानसिकता की उम्मीद किस तरह की जा सकती है?
क्लब फैक्ट्री के इस कृत्य का पुरज़ोर विरोध होना चाहिए। कम से कम महिला अस्मिता के लिए मुख़र लोगों को इस ऑनलाइन मार्केटिंग पोर्टल का पूरी तरह बहिष्कार करना चाहिए। यह कम से कम तब तक के लिए जरूर होना चाहिए जब तक कि क्लब फैक्ट्री अपनी इस शर्मनाक हरकत की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए शर्मिंदा होकर माफ़ी न मांग लें। माफ़ी फेसबुक को भी मांगनी चाहिए जो अपने यूज़र्स को स्त्री के प्रति दुर्भावना से भरे ऐसे घटिया विज्ञापन परोसता है, जबकि हाल के दिनों में फेसबुक आपत्तिजनक विडियों को लेकर अपनी संवेदनशीलता का दावा यूज़र के अकाऊंट को ब्लांक करके दिखा रहा है।
सोसल मीडिया पर सक्रिय लोगों और समाज को यह समझना होगा कि अश्लीलता के सवाल का जवाब देने की ज़िम्मेदारी जितनी अदालतों की है उतनी ही बाज़ार और समाज के हर संवेदनशील व्यक्ति की भी है। टी-शर्ट पर लिखे- स्टार्ट फ़किंग और ऐश-ट्रे में मौजूद महिला की योनी में सिगरेट, महिलाओं के नग्न छवि के निरूपण से  फ़र्क अदालतों से ज़्यादा समाज को सीखना ही होगा। एम-एफ़ हुसैन की चित्रकारी, न्यूड आर्ट की प्रदर्शनी, कंडोम के विज्ञापन और टी-शर्ट के स्लोगन, कला-सेक्स और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ईर्द-गिर्द घूमते हैं. सेक्स अश्लील भी है और एक अभिव्यक्ति भी और इस अभिव्यक्ति के मायने और तरीके लगातार बदल रहे हैं, इसलिए इसको नियंत्रित करने के लिए कानून भी सख्त करने की ज़रूरत है।
टी-शर्ट पर छपी हर अश्लील अभिव्यक्ति और इसका बाज़ारीकरण के केंद्र में महिलाएं ही निशाने पर होती है किसी भी उत्पाद को बेचने के लिए महिलाओं के शरीर और भावनाओं का इस्तेमाल कहां तक उचित ठहराया जा सकता है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जिस समाज को हम महिलाओं के हर सवाल पर संवेदलशील बनाना चाहते है, उसी समाज में उत्पादों को बेचने के लिए महिलाओं की अश्लील चित्रों के अभिव्यक्ति को जायज कैसे ठहरा सकते है?

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