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अक्तूबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

असंवेदनहीन हो रहे समाज का समाधान क्या है? -प्रत्युष प्रशांत

टीपू सुल्तान: इतिहास क्या है इस सवाल को जनभावना के नाम पर सड़कों पर तय नहीं किया जा सकता( आभार, द वायर) - सौरभ बाजपेयी

सिर्फ सड़क बनाने से नहीं, सड़क दुर्घटना कम करने से होगा असल विकास- प्रत्युष प्रशांत

मेरे गांव का पवित्र लोकपर्व ‘छठ’ अब धार्मिक कर्मकांड में फंस रहा है-राजीव रंजन (आभार: लेख मूल रूप से यूथ के अवाज के लिए लिखी गई है)

महिलाओं के सामाजिक समरसता और अभिव्यक्ति का महापर्व है –छठ पूजा -प्रत्युष प्रशांत

शुक्रिया रोज़, हम सबको हिम्मत देने के लिए, मुझे भी कुछ कहना है #MeToo-Rachana Priyadarshini

भला कहीं पटाखे और मिठाइयां हिंदू मुसलमान भी होते हैं -प्रत्युष प्रशांत

जब खेती का ज्यादातर काम महिलाएं करती हैं तो किसान का मतलब सिर्फ पुरुष क्यों है? प्रदीपिका सारस्वत (आभार- सत्याग्रह)

सत्ता से आंख मिलाकर नेहरू से सवाल करने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया- -प्रत्युष प्रशांत