‘चरित्रहीन स्त्री’ की पहचान करवाने वाली मीडिया संस्थाओं की सोच पर शर्म है- शेष नाथ वर्णवाल

तसलीमा नसरीन ने कहा है, “धर्म अब महिलाओं की प्रगति में पहली बाधा है।” यह बात धीरे-धीरे मुझे अपने अनुभव से सच लगने लगी है। हालांकि इसका अंदाजा मुझे कतई नहीं था कि यह बाधा साजिश के तहत धर्मशास्त्रों और पितृसत्ता द्वारा आज भी कायम रखने की कोशिश की जा रही है। इसकी पुष्टि मुझे फेसबुक पर एक खबर की लिंक को देखकर हुआ, जिसे मेरे फेसबुक के एक मित्र ने साझा किया था। इस खबर का शीर्षक था, “चरित्रहीन महिलाओं की ऐसे करें पहचान।”

सबसे पहले मैंने इसका स्क्रीन शॉट लिया, यह सोच कर कि कहीं यह खबर हटा ना दी जाय। उसके बाद उस लिंक पर क्लिक किया। सचमुच वह खबर हटा ली गयी थी। कब, पता नहीं। इस खबर में जिस ऑनलाइन न्यूज़ का लिंक था, वह था m.patrika.com। जी! वही पत्रिका जो प्रिंट में ‘राजस्थान पत्रिका’ के नाम से आता है।
इसे पढ़ने के बाद, मैंने सोचा कि कोई पत्रकार कैसे ऐसी महिला द्वेषी खबर लिख सकता है? एक ख्याति-प्राप्त मीडिया कैसे अपने न्यूज़ पोर्टल में ऐसी घटिया बात छाप सकता है? पत्रकार और अखबार तो समाज को बेहतर दिशा देने के लिए होते हैं, महिलाओं के प्रति घृणा फैलाने और भेदभाव तथा शोषण को जस्टिफाई करने के लिए नहीं।
मैंने खबर के शीर्षक को ‘गूगल’ में टाइप किया तो कई ऑनलाइन मीडिया पर यह खबर लगभग इसी टाइटल से मिली। कंटेंट भी लगभग एक जैसे थे। ‘डेलीहंट’ (https://m.dailyhunt.in) में उसका शीर्षक है, “इस तरह करें चरित्रहीन महिलाओं की पहचान, जानिए कुछ खास निशानियां!” इस खबर में लिखा है, “ऐसी स्त्रियों को सामाजिक भाषा में कुलक्षिणी कहा जाता है। स्त्री के चेहरे और उसके शरीर पर कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जो उसे लक्ष्मी का स्वरूप नहीं बल्कि कुलक्ष्मी करार देते हैं। आज हम ऐसी ही स्त्रियों के बारे में बात करेंगे…।”
फिर आगे ऐसी स्त्रियों की पहचान के लक्षण बताये गए हैं। जैसे उसके पैर के आकार कैसे होते हैं, होठ कैसे होते हैं, पेट कैसा होता है, आदि आदि। हाथों की नस, गर्दन की लम्बाई और दांतों से भी ऐसी चरित्रहीन महिलाओं की पहचान के तरीके बताये गए हैं।
ऐसी ही बात ‘अच्छी खबर’ (http://www.achhikhabar.in) नामक न्यूज़ पोर्टल पर भी है। इसका शीर्षक है, “ये होती हैं चरित्रहीन महिला कुछ खास निशानियां, इस तरह करें इनकी पहचान…”।
इसे रोचक खबर की कैटेगरी में भी रखा गया है। साथ ही हिन्दू धर्मशास्त्रों का हवाला भी दिया गया है। लिखा है, “याज्ञवल्क्य (1/70-72) के मुताबिक उस स्त्री से सारे अधिकार छीन लेने चाहिए, जो स्वयं अपना सतीत्व खोए। इनमें नौकर-चाकर की सुख-सुविधाओं से वंचित करने के अलावा उसे गंदे कपड़े पहनाने, ज़िंदा रहने उतना ही खाना देने, उसकी उपेक्षा करने, धरती पर सोने की सज़ा शामिल थी।” ध्यान देने की बात यह है कि ऐसी चरित्रहीनता की बात पुरुषों पर लागू नहीं है, और ना ही धर्म शास्त्रों में ऐसा कुछ मिलता है।
‘स्पीकिंग ट्री’ (https://hindi.speakingtree.in) नामक पोर्टल पर भी ऐसा ही कुछ है। उसका शीर्षक है, “ससुराल पक्ष के लोगों के लिए अशुभ साबित होती हैं ऐसी स्त्रियां।” 
भारतीय समाज में जहां पति को परंपरा और धर्मशास्त्रों से परमेश्वर का दर्जा प्राप्त है, पत्नी के लिए वट-सावित्री पूजा से लेकर करवाचौथ जैसे त्यौहार पति के प्रति खुद को वफादार और दोयम साबित करना नहीं है? अगर ऐसा नहीं होता, तो लम्बी उम्र की कामना सिर्फ पत्नी नहीं करती, पति भी पत्नी के लिए ऐसी कामना करता।
क्या ऐसी खबरें महिलाओं के प्रति पुरुषों के पूर्वाग्रह तथा उसके चरित्र को झूठे मानदंड तय कर समाज में उनको दोयम बनाए रखे जाने की साजिश तो नहीं, जिसमें धर्म ग्रन्थ भी सहयोगी की भूमिका में हैं।
(आभार: यूथ की आवाज, लेख मूल रूप से यूथ की आवाज के लिए लिखा गया है।)

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