दुनिया के पेंटिंग कैनवस पर भारत को मशहूर करने वाली अमृता शेरगिल-प्रत्युष प्रशांत

पद्मावति वाया पद्मावत अब तक देखने की इच्छा नहीं के बराबर हुई। बार-बार यह सवाल कचोटता रहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सवाल पर महिलाओं की अस्मिता का सवाल दरवाज़े पर आकर क्यों खड़ा हो जाता है? कैसे कला अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से परंपराओं के विरुद्ध संघर्ष कर सकती है? फिल्म की कमाई इसके सारे दाग को साफ कर चुकी है, इसलिए उचित-अनुचित की बहस में फंसना अब बेमानी ही है। पर क्यों कोई भी कला अपनी अभिव्यक्ति में महिलाओं के संघर्ष की जद्दोजहद को समेट नहीं पाती है, वह महिलाओं की विवशता में ही बंधकर क्यों रह जाती है? यक्ष प्रश्न के तरह यह सवाल स्थिर ही रहेगा।

बहरहाल, इन सारी बहसों में ना फंसते हुए, कला की अभिव्यक्ति के कैनवस पर अमृता शेरगिल को उनके जन्मदिवस पर याद करना चाहता हूं। कला की अभिव्यक्ति में अमृता शेरगिल ने कम समय में जितना काम किया वह महत्वपूर्ण तो है ही, उसका आकार विपुल भी है। खासकर तब जब अमृता शेरगिल की पेंटिग्स में भारतीय समाज में पुरुषों के द्वारा उत्पीड़न से त्रस्त महिलाओं की जीवन भाषा भी दिखती है और मुक्तिकामी हितों की चिंता भी दिखती है। इसलिए आधुनिक भारतीय चित्रकला में अमृता शेरगिल का नाम अमर है।
लाहौर के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में मिले उमराव सिंह शेरगिल और मारिया एंटोनेटी के प्रेम विवाह से इंदिरा शेरगिल और अमृता शेरगिल का जन्म हुआ। अमृता शेरगिल के दादा राजा सूरत सिंह पहले महाराजा रणजीत सिंह के क्षत्रप थे, गदर के बाद उन्हें मजीठा की रियासत और जागीरदारी मिली। बाद में उन्हें बनारस, डुमरी व गोरखपुर के जागीदार भी घोषित किए गए। इस बीच अमृता शेरगिल मां के साथ पेरिस के अकादमिक महौल और भारत के अमीर लोगों के बीच ही रहीं।
बचपन में चित्रकार इर्विन बकेट जो उनके मामा थे ने अमृता को चित्र संरचना की दीक्षा दी। उन्होंने भारत और पश्चिम के देशों की कला यात्राएं भी की। समृद्ध परिवार से होने के कारण उनकी मुलाकात मशहूर संस्कृतिकर्मियों से होती रहती थी। चार्ल्स फाबरी सरीखे कलाकार उनकी कला की तारीफ अखबारों के कला स्तंभ में करते थे। अमृता की कला के प्रशंसक नेहरू, मशहूर शायर इकबाल सरीखे लोग भी कहे जाते हैं।
अमृता ने कला यात्रा की शुरूआत अपनी बहन इंदिरा की तस्वीर की एक पूरी श्रृंखला बनाकर की। उनकी शुरुआती पेंटिग्स में एक ऐसी महिला दिखती है जो अपने समय से कहीं आगे और परंपराओं से काफी अलग चलती है। (सेल्फ पोट्रेट) में उनकी आज़ादखयाली को देखा जा सकता है, इसमें वो कहीं चिंतित तो कहीं उत्तेजित नज़र आती हैं, निर्बाध और आज़ाद। हालांकि द ब्राईड टायलट में राजसी वस्त्रों में ढके महिला के दु:ख की छवियां भी उभरकर सामने आती हैं।
उनकी कला में संघर्ष के जद्दोजहद्द की शुरूआत भारत भम्रण के बाद दिखती है। भारत आने के बाद उनके कैनवस पर सांवली त्वचा के लोगों और स्थानीय संस्कृति ने जगह बनाई, जिससे धीरे-धीरे पश्चिम का प्रभाव कम होने लगा। टू मेंडिकेंट्स, ग्रुप ऑफ थ्री गर्ल्स, मदर इंडिया, विलेजर्स इन विंटर, हल्दी ग्राईंडर, रेस्टिंग मदर, वुमेन इन चारपाई जैसी इन पेंटिंग्स में समतल रंगों के पीछे भदेस टटकापन उभरकर आता है। अमृता वो हैं जिन्होंने पहली बार भारतीय महिलाओं को कैनवस पर उतारा। हालांकि इसके पहले राजा रवि वर्मा महिलाओं को चित्रित कर चुके थे, पर वो देवी या फिर राजकुमारियों तक ही सीमित थे। राजा रवि वर्मा ने अपनी पेंटिंग्स में आम महिलाओं को नहीं उकेरा। इस तरह अमृता की कला राजा रवि वर्मा से आगे निकल जाती है।
अपनी पेंटिग्स में अमृता शेरगिल ने आम भारतीय महिलाओं के दु:ख और खंडित भावनाओं की मुद्राएं, मानसिक त्रासदी को उकेरा। रेस्टिंग, टू गर्ल, रेड वैरांड, वुमेन इन रेंड जैसी पेंटिंग्स में जातीय और लैंगिक भेदभाव उभरकर सामने आता है। अमृता की पेंटिंग्स में स्त्री अस्मिता के प्रति उनका लगाव उपस्थित दिखता है। औरतपन का एहसास, महिलाओं की आज़ादी और भरपूर प्रेम का आग्रह उनके चित्रों में उभरता है।
अमृता ने अपने परिवार के इच्छा के विपरीत एक साधारण से चिकित्सा के छात्र से विवाह किया। परिवार के लोग चाहते थे कि अमृता अपनी बहन इंदिरा की तरह किसी राजसी परिवार या किसी आला अफसर से शादी करें। सामंती माहौल की घुटन से निकलने के लिए उन्होंने विक्टर ऐगान से शादी की।
अमृता के चित्रों में जब शिकायतों के रूपक उभरने लगे, तब मात्र 29 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। असमय निधन के बाद भी बेहद कम समय में अमृता ने कला जगत को जीवन से जुड़े रहस्यों के बारे में जितना दिया, वह अमॄता शेरगिल को कला की दुनिया का बेमिसाल हीरा बना देता है। अमृता की कला की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि उनकी पेंटिग्स समस्या से दूर नहीं भागती हैं, वह देखने वालों के सामने गूंगी बनकर खड़ी नहीं होती, वह देखने वालों से रूबरू होकर स्वयं को अभिव्यक्त कर देती हैं, अपनी अस्मिता की बहस शुरू कर देती हैं।.
(आभार: यूथ की आवाज, लेख मूल रूप से यूथ के आवाज के लिए लिखा गया है,https://www.youthkiawaaz.com/2018/01/amrita-shergil-the-great-indian-artist-and-painter/)

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