“जिस मुज़फ्फरपुर ने मुझे सामाजिक होना सिखाया, आज वही शहर असामाजिक तत्वों से घिरा है”- प्रत्युष प्रशांत

बिहार की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाना वाला शहर मुज़फ्फरपुर, जो इतिहास में युवा क्रांतिकारी खुदीराम बोस की शहादत, देवकीनंदन खत्री, रामवृक्ष बेनीपुरी, जानकी वल्लभ शास्त्री और कई साहित्यकारों की साहित्यक कृतियों की थाती रही है। एक समय सबसे अधिक अखबार प्रकाशित करने वाले शहर के रूप में प्रसिद्ध रहा, इमरजेंसी के दौर में जेल में बंद जॉर्ज फर्नांडीज को लाखों वोट से विजयी बनाकर अपनी राजनीतिक चेतना का परिचय देता रहा। “गोलू हत्याकांड” त्रासदी के वक्त सामाजिक ऊबाल से दो दिन के कर्फ्यू को झेलने के बाद भी खामोश नहीं रहा।


मेरा शहर मुज़फ्फरपुर, जिसकी गलियों की मिट्टीयों में दौड़ते-भागते, साइकिल चलाते हुए मैंने खुद को सामाजिक बनाया और समाजिकता का मूल्य अर्जित किया। आज वह शहर, अपनी सामाजिक चेतना के डूबकर मर जाने का शोक भी नहीं मना पा रहा है।
व्यक्तिवादी होते जा रहे समाज की सामाजिक और सामूहिक चेतना साइबर स्पेस की खिड़की तक सीमित होकर रह गई है। वह लाइक, शेयर और कमेंट्स करके ही खुद को सोशल और कूल बनाए रखना चाहता है।
जिन बच्चियों के समर्थन में व्यापक जनआंदोलन की ज़मीन तैयार होनी चाहिए थी, वहां रोध, विरोध, प्रतिरोध की भी ज़मीन तैयार नहीं हो पा रही है। क्या इसलिए क्योंकि इन बच्चियों की अपनी पहचान स्पष्ट नहीं है या समाज में इन बच्चियों की जातीय, वर्गीय या धार्मिक पहचान उनके लिए न्याय का रास्ता नहीं खोज पा रही है?
आखिर वह कौन सी वजह है जिसके कारण सभ्य कहे जाने वाले समाज की चुप्पी नहीं टूट पा रही है। आखिर क्यों समाज पीड़ितों के पक्ष में लामबंद नहीं हो पा रहा है?
जबकि गुनाहगार के पक्ष में उसके परिवार के सदस्य की तरफ से भी बेतुके बयानों का सिलसिला जारी है। अपराधियों, कुंठितों, बलात्कारियों के बचाव में उनके परिवार के पक्षधर होने की यह पहली घटना नहीं है, पहले भी यह होता रहा है। जहां एक तरफ, दोषी व्यक्ति की पत्नी अपने पति के लिए सावित्री की मिथकीय भूमिका में है तो दूसरी तरफ प्राउड टू माई फादर कहकर बेटी आदर्श बेटी की भूमिका में है।
ज़ाहिर है परिवार में अच्छी पत्नी और अच्छी बेटी के समाजीकरण की इतनी गहरी तरह से पैठ बनी हुई है कि बलात्कारी पुरुष के पक्ष में खड़े रहने में परिवार की महिलाओं को संकोच नहीं है। वहीं राजनीतिक पार्टियों के अंधभक्त समर्थक भी गुनाहगार व्यक्ति के साथ राजनीतिक पार्टी प्रमुख की तस्वीर को सोशल मीडिया पर शेयर कर “तू डाल-डाल, मैं पात-पात” का मनोरंजन खेल खेलने में मशरूफ हैं।
जिस शहर से बड़ी-बड़ी लेखिकाएं (जिन्होंने स्त्री अधिकारों के विषय पर सार्वजनिक मंचो से लेकर मीडिया और अकादमिक हलकों में हलचल मचा रखी हो), पत्रकार (जिन्होंने सत्ता के बड़े अमलदारों को अपने सवालों से झकझोर रखा हो) निकले हों, वो अपने ही शहर में हुए जघन्य कृत्य के खिलाफ बोलने में हिचकिचा ही नहीं रहें बल्कि उनकी घिग्घी बंधी हुई है।
क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि पीड़ित बच्चियों के माथे पर मां-बाप का साया नहीं है या इसलिए कि गुनाहगार व्यक्ति रसूखदार जमात से आता है।
सुना है शर्मदारी के चुल्लू भर पानी में डूब मरने से मन का बोझ कम होने लगता है, सीने का भारी पत्थर हटे ना हटे, अपने अपराध बोध के हल्का होने का मुगालता अवश्य हो जाता है। शर्म के स्यापा को हटाने के लिए धीरे-धीरे प्रगतिशीलों की जमात ने सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया में लिखना और बोलन शुरू किया है क्योंकि गुनाहगार की कैद में जाते समय की हंसती हुई वायरल हो रही तस्वीर ने सबों के चेहरे पर झन्नाटेदार थप्पड़ मारा, जिसकी निशाने सुर्ख गालों पर पैबंद हो गई है।
बहरहाल, मुज़फ्फपुर के बालिका गृह में शोषण का मामला जांच एजेंसी सीबीआई के हवाले है और सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वयं संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया है। मुख्यधारा मीडिया भी अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए हर रोज़ मामले में सनसनी की खबर सूंघ रहा है।
परंतु, दोष के पक्ष में समाज की चुप्पी और दोषी के पक्ष में अर्नरगल अभिव्यक्ति सिद्ध कर देता है कि समाज की मानवीय चेतना सड़ चुकी है, अब बस उससे मवाद निकलना ही शेष है। दोषी व्यक्ति को कठोर सज़ा मिलने के साथ, समाज को यह समझना अधिक ज़रूरी है कि किसी भी लड़की की इज्ज़त तिनके का तोप भर नहीं है, जो किसी की विकृत मानसिकता के फूंक से उड़ा दी जाए। गोया, समाज जब तक सोता रहेगा, मुज़फ्फरपुर कांड स्वयं को दोहराता रहेगा।
If you are a survivor, parent or guardian who wants to seek help for child sexual abuse, or know someone who might, you can dial 1098 for CHILDLINE (a 24-hour national helpline) or email them at dial1098@childlineindia.org.in. You can also call NGO Arpan on their helpline 091-98190-86444, for counselling support.
(आभार: यूथ की आवाज़, लेख मूल रूप से यूथ की आवाज के लिए लिखा गया है।)

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