पूजा के दौरान पीरियड में दवा लेती हैं महिलाएं-अनघा पाठक

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"हां, मैंने परसों ही पीरियड्स रोकने की गोली ली है क्योंकि हमारे घर में सत्यनारायण पूजा थी." दो बच्चों की मां 27 वर्षीय कल्याणी ने ये बात बताई, जो घरों में बाई का काम करती हैं.
उनकी सास भगवान की पूजा में तल्लीन रहती हैं. घर में कल्याणी ऐसी अकेली महिला हैं जो विधवा नहीं हैं, लिहाजा भगवान की पूजा का जिम्मा उन्हीं के सिर पर है.
ऐसे में अगर उनका पीरियड शुरू हो जाए तो पूजा के काम को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है.
लेकिन कुछ साल पहले एक रामबाण दवा मिल गई जिससे वो अपने पीरियड को टाल सकती हैं.
वो कहती हैं, "इस सीज़न में कई त्योहार हैं. मेरा परिवार धार्मिक मान्यताओं को लेकर बहुत सख़्त है कि पीरियड्स के दौरान क्या छू सकते हैं और क्या नहीं. इसके अलावा मैं जिन घरों में काम करती हूं, गौरी पूजन के दौरान वहां की महिलाएं भी मुझसे पूछती हैं कि कहीं मुझे पीरियड्स तो नहीं आ रहे."
कल्याणी कहती हैं, "अपनी सोच को लेकर वो भी सही हैं. भगवान के काम को लेकर कोई झूठ कैसे बोल सकता है? तो अगर मेरे पीरियड्स चल रहे होते हैं तो वो मुझे आने से मना कर देती हैं. कभी-कभी इसकी वजह से मेरे पैसे भी कटे हैं. ऐसे में नुकसान सहने के बजाए गोलियां लेना ही बेहतर है, है ना?"

त्योहारों पर बढ़ती है गोलियों की मांग

पूजनोत्सव अगस्त के महीने में शुरू होता है. इस दौरान फूलों, पूजा सामग्रियों, सत्यनारायण पूजा की किताबें, अगरबत्तियों और मिठाइयों की मांग बढ़ जाती है. साथ ही इस सीजन में पीरियड्स टालने वाली गोलियों की मांग भी बढ़ जाती है.
बुलढाना ज़िले के देउलगांव राजा में एक दवा की दुकान चलाने वाले राजू झोर कहते हैं, "गणपति और महालक्ष्मी पूजा के त्योहारों के दौरान इन गोलियों की मांग बहुत रहती है. महिलाएं इन त्योहारों के दौरान ही इन गोलियों को विशेष रूप से लेती हैं. इस दौरान हम एक दिन में इन गोलियों की 10-15 स्ट्रिप्स बेचते हैं."
उनके अनुभव के मुताबिक इन गोलियों का उपयोग न केवल शहरों में बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी किया जाता है.
भगवान की पूजा के दौरान अशुद्धता से बचना इन गोलियों को लेने का एकमात्र मकसद है.
भारत जैसे देश में लोग पीरियड्स के बारे में खुलेआम बात नहीं करते हैं.


महिलाओं पर इस दौरान कई तरह के प्रतिबंध होते हैं. कई राज्यों में महिलाओं को इस दौरान अलग कमरे में रखा जाता है. यहां तक कि ठंड के दौरान पीरियड्स के दिनों में उन्हें गौशाला तक में सुलाया जाता है. इस दौरान किसी भी तरह के पूजा पाठ की गतिविधियों में उनका भाग लेना वर्जित होता है.
लेकिन त्योहार की सभी आवश्यक तैयारी का जिम्मा तो घर की औरतों के ऊपर ही होता है और ऐसे में अगर पीरियड्स शुरू हो गए तो ये सब काम कौन करेगा? और यहीं विज्ञान उनकी मदद को आगे आया और इन गोलियों के ज़रिए अब महिलाएं बेझिझक धार्मिक पूजा-पाठों में भाग ले रही हैं.

गणपति उत्सव
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राजू झोर कहते हैं, "महिलाएं दवा की पर्ची के बगैर ये गोलियां ख़रीदने हमारे पास आती हैं. आमतौर पर वो इन गोलियों को लेने से पहले किसी डॉक्टर से सलाह नहीं लेतीं. उनके घर में जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं वो इन दवाइयों को लेना नहीं भूलतीं. अमूमन तीन गोलियां काफी होती हैं, लेकिन इन दिनों महिलाएं एक साथ छह-सात गोलियां ख़रीदती हैं."
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क्या इन गोलियों के साइड इफ़ेक्ट्स नहीं होते जो इतनी आसानी से उपलब्ध हैं?
सहयाद्रि अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गौरी पिंपरालकर कहती हैं, "कोई भी स्त्री रोग चिकित्सक इन दवाइयों को नहीं लिखते हैं."
महिलाओं में मासिक धर्म दो हार्मोन्स पर निर्भर करते हैं- एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन. पीरियड्स को टालने के लिए इन हार्मोन्स की गोलियां लेनी होती हैं. यानी कि ये गोलियां आपके हार्मोनल साइकिल को प्रभावित करती हैं. अगर कोई इन हार्मोन्स को भारी मात्रा में लगातार लेता है तो इससे ब्रेन स्ट्रोक, लकवा, मिर्गी के दौरे आ सकते हैं. हमें ऐसे कई मामले मिले हैं. महिलाएं 10-15 दिनों तक ये गोलियां लेती हैं और यह इन हार्मोन्स की बड़ी मात्रा है. इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं."
डॉक्टर गौरी के मुताबिक महिलाएं इन दवाइयों को लेने से पहले डॉक्टर से सलाह नहीं लेतीं. वो कहती हैं, "ये गोलियां दवा दुकानों में आसानी से उपलब्ध हैं, यही कारण है कि महिलाओं को जब लगता है कि ये गोलियां लेनी चाहिए वो ले लेती हैं."
किसी भी दवा को लेने से पहले रोगी का इतिहास जानना बहुत महत्वपूर्ण है. अगर किसी महिला को वर्टिगो या माइग्रेन, स्ट्रोक, ब्लड प्रेशर, मोटापा जैसी समस्या है तो ये गोलियां उनके स्वास्थ्य को गंभीर ख़तरा पहुंचा सकती हैं.

महिला एथलीट भी इन गोलियों को लेती हैं

खेल प्रतियोगिताओं के दौरान महिला एथलीट इन गोलियों को पीरियड्ट टालने के लिए लिया करती हैं. क्या इससे उनके शरीर पर ख़राब असर नहीं पड़ता?
डॉक्टर गौरी कहती हैं, "एथलीट महिलाओं का मामला अलग है. वो अच्छा आहार लेती हैं, उनका शरीर मज़बूत होता है, वो नियमित व्यायाम करती हैं. इसलिए जब वो ये गोलियां लेती हैं तो इसके साइड इफेक्ट्स की संभावना कम हो जाती है. साथ ही एथलीट महिलाओं के मुकाबले पूजा के दौरान इन गोलियों को लेने वाली महिलाओं की संख्या कहीं अधिक है और वो ये गोलियां लंबी अवधि तक लगातार लेती रहती हैं."
डॉक्टर गौरी कहती हैं, "भगवान नहीं कहते कि पीरियड्स के दौरान महिलाएं कोई धार्मिक क्रिया नहीं कर सकतीं. इसलिए महिलाओं को ऐसी ग़लत मान्यताओं के कारण अपने शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए."
यही बात भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई भी कहती हैं. उन्होंने नासिक के शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की अनुमति, मुंबई के हाजी अली दरगाह में, नासिक के त्रयंबकेश्वर में, कपालेश्वर मंदिर और कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर आंदोलन किया था.
वो कहती हैं, "पीरियड्स अशुद्धता नहीं है. यह तो प्रकृति की देन है. हमें इसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए. महिलाएं पीरियड्स के दौरान मंदिरों में नहीं जातीं, वो इसे पूजा उत्सवों के दौरान टालने के लिए गोलियां लेती हैं. ये सब एकदम ग़लत है. मुझे कई गणपति उत्सव में बुलावा आता है. उन दिनों मेरे पीरियड्स चल रहे होते हैं, लेकिन मैं कभी ऐसा नहीं कहती कि मैं इसकी वजह से उन समारोहों में भाग नहीं ले सकती. हमें समाज में चल रही इस तरह की ग़लत प्रथाओं को रोकना होगा."
धर्मशास्त्र में यह कहीं नहीं लिखा कि महिलाएं पीरियड्स के दौरान पूजा नहीं कर सकतीं.
पंचांग बनाने वाले डीके सोमन कहते हैं, "धर्मशास्त्र में कहीं यह नहीं लिखा हुआ है कि महिलाएं पीरियड्स के दौरान कोई धार्मिक कार्य नहीं कर सकतीं. पहले के जमाने में पीरियड्स से गुजर रही महिला को घर के एक कोने में बैठा दिया जाता था. इसके पीछे उद्देश्य यह था कि इस दौरान उन्हें आराम मिल सके और साथ ही उनकी सफ़ाई का पूरा ख्याल रखा जा सके."
वो कहते हैं, "लेकिन आज के दौर में इसकी ज़रूरत नहीं है. मानिए, कोई महिला किसी घर में अकेली रह रही हो और उसे पीरियड्स शुरू हो जाए तो क्या वो नैवेद्य (भगवान का प्रसाद) के लिए कुछ पकाएगी नहीं? निश्चित रूप से उसे पकाना होगा. और इसे भोग लगाने से पहले हम तुलसी पत्ता और दूर्वा (दूब) देकर इसे पवित्र बनाने की प्रक्रिया तो करते ही हैं. तो इस दौरान नैवेद्य बनाने और यहां तक कि पूजा करने में भी कोई नुकसान नहीं है."
इन गोलियों को लेने को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. लेकिन सवाल यह उठता है कि महिलाओं को आदिकाल की मान्यताओं के आधार पर क्या अपने स्वास्थ्य को जोख़िम में डालना चाहिए?
(आभार, बीबीसी हिंदी, लेख मूल रूप से बीबीसी हिंदी के लिए लिखी गई है।)


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