क्या देश के लिए पदक से कम होगी नस्लीय भावना?तेजी ईशा


यह सच है कि मीडिया की भागीदारी ज्यादातर वैसे सेमिनारों और घटनाओं के लिए होती है जिसे ज्यादा से ज्यादा पाठक और दर्शक पढना-देखना जरूरी समझते हैं. पिछले दिनों जब मैरी कॉम ने ऐशिआई खिताब फिर भारत को दिलाया, तब मीडिया की उदासी खेल प्रेमियों के लिए निराशाजनक रही. छह बार विश्व मुक्केबाजी जीत चुकी और 2014 में ऐशिआई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल कर  भारत का गौरव बढ़ाने वाली मैरी कॉम ने पूर्वोतर की पीड़ा को अपने शब्दों में कुछ इस तरह से व्यक्त किया – “मैं  उम्मीद करती हूँ कि पूर्वोतर के लोगों द्वारा देश के लिए मेडल जीत जाने से उनके प्रति नश्लीय भेदभाव कम होगा.”

समझा जा सकता है कि मैरी कॉम के ये शब्द पूरे पूर्वोतर की आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. आखिर वह क्या कारण है कि जिस शख्सियत पर बालीवुड ने एक फिल्म बनाई, जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने मैरी कॉम की भूमिका अदा की और तो और जिसे aए.आई.बी. ने ‘मैग्नीफिसेंट मैरी’(प्रतापी मैरी) के नाम से संबोधित किया, वह ऐसा बोलने पर मजबूर क्यों है ?

यह शब्द बहुत गरिमा में रहते हुए कहा गया होगा, लेकिन इसका सार बहुत बड़ा है. यह छुपा हुआ नहीं है कि पूर्वोतर राज्य शेष भारत से सिर्फ और सिर्फ मानचित्र में जुड़ा है. मानसिक और भावनात्मक रूप से अभी भी विभेद का रिश्ता है. नश्लीय भेदभाव के खामियाजों का उदाहरण आये दिन सामने आ ही जाते हैं. अभी बीते समय फीफा कप में सबसे ज्यादा खिलाडी भी पूर्वोतर राज्य से ही रहे. पूर्वोतर राज्य की कुछ गिनती भर उपलब्धियां गिनती के कुछ दिन सुर्खियों में होते हैं.

अपनी रूचि की वजह और अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करने के लिए मैरी कॉम ने बॉक्सिंग शुरू की थी. वे कहती हैं कि ‘बॉक्सिंग को प्रायः पुरषों का खेल समझा जाता है. लेकिन मैंने ठान लिया था कि मुझे इसी में अपने देश का नाम रोशन करना है. हम पुरषों से अधिक मेहनती हैं और देश को ऊँचे स्तर पर ले जाने के लिए कोई भी लड़ाई लड़ सकते हैं.

भारतीय महिला खिलाडियों की खेलउम्र की अटकलें व्यर्थ चली गई जब मैरी कॉम ने फिर एक सफलता हासिल की. हमारी भारतीय मानसिकता ऐसी होती है कि एक महिला खिलाड़ी तो दूर एक साधारण महिला के लिए विवाह-परिवार और बच्चे के होने के साथ-साथ ही उनके खेल जीवन के ग्राफ को अवनति चरण के रूप में लेने लग जाते हैं. लेकिन हमारी भारतीय स्टार मुक्केबाज एमसी मेरी कॉम ने एक बार फिर अपना दम दिखा कर एक बनी-बनाई मानसिकता तोड़ दी. वियतनाम में खेली गई एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद मैरी कॉम का कहना है कि लगातार अभ्यास करते रहने से और अपने को फिट रखने के कारण उन्हें कोई भी मुक्केबाज में आसानी से नहीं हरा सकती. इस स्वर्ण पदक पर मैरी कॉम ने एशियाई चैंपियनशिप के 48 किलोग्राम भारवर्ग में कब्जा जमाया है.   

35 बरस की मैरी कॉम राज्यसभा सांसद और भारत में मुक्केबाजी की सरकारी पर्यवेक्षक भी हैं। इसके अलावा वह तीन बच्चों की मां हैं। साथ ही इम्फाल में उनकी अकादमी भी है जिसे वह अपने पति ओनलेर कोम के साथ मिलकर चलाती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं सक्रिय सांसद हूं। नियमित रूप से संसद जा रही हूं और चैम्पियनशिप के लिए भी कड़ी तैयारी की। चूंकि मैं सरकारी पर्यवेक्षक हूं तो सारी बैठकों में भी भाग लेना होता है। उम्मीद है कि लोग समझेंगे कि यह कितना कठिन है।’

हमने ऐसे सामजिक और सरकारी नुमाइंदगी बना ली है जहाँ सुविधानुसार पूरा तंत्र संचालित होता है. एक तो यह महिला हैं  – जिसके समाजिक विकास में योगदान की बातें मंच की शोभा के लिए होती है. और दूसरा सम्बन्ध इनका पूर्वोतर से हैं जो वैसे भी सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में हमेशा नीचे की गिनती पर रहता है. जहाँ बुलेट ट्रेन की कल्पना रूप ली जा रही है वहीं पूर्वोतर जैसे राज्यों में रेल सुविधा नहीं है. विकास इससे नहीं तय होता है कि किसी सरकारी काम के लिए पूर्वोतर भारत जाने के लिए सरकारी चपरासी को भी ट्रेवलिंग खर्च रेलवे के बजाय हवाई जहाज का मिलता है. यह जग जाहिर है कि विकास के लिए मूल-भूत सुविधा क्या होती है और कितनी निष्ठा मांगती है.    

मेरी कॉम का ध्यान अगले साल होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों पर है. वो काफी खुश हैं और 48 किलोग्राम भारवर्ग श्रेणी राष्ट्रमंडल खेलों में है. उनका कहना है कि उनकी पूरी कोशिश पहले इन खेलों में पदक जीतने की है उसके बाद किसी और टूर्नामेंट के बारे में सोचेंगी.'

मेरी कॉम इससे पहले 51 किलोग्राम भारवर्ग में मुकाबला कर रही थीं, लेकिन एशियाई चैंपियनशिप में उन्होंने 48 किलोग्राम भारवर्ग में वापसी की. मेरी कॉम का कहना है कि अगर टोक्यो ओलंपिक-2020 में 48 किलोग्राम श्रेणी होती है, तो वह पदक जीतने को लेकर आश्वस्त हैं. अगर नहीं, तो उन्हें 51 किलोग्राम भारवर्ग में खेलना है.

 

इन आधुनिक समय में खेलों में महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है, खासकर भारत में। हालांकि, खेल में उनकी भागीदारी और उपलब्धियों के अलावा, यह लगता है कि खेल में महिलाओं की भागीदारी को और भी अधिक सकारात्मक ढंग से विस्तारित करने की आवश्यकता है. मैरी कॉम, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, दीपा कर्मकार जैसी खिलाड़ियों के जुझारूपने पर  सरकार की आँखे अब गई है. उनका ध्यान कितने देर और किस विकासशील प्रक्रिया तक रहेगा यह देखना अभी बांकी है.

 
(आभार :तेजी ईशा,लेखिका पूर्वोतर पर शोधार्थी हैं, लेख मूल रूप से सुबह सवेरे दैनिक अखबार भोपाल के लिए लिखा गया है)

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