मुल्ला जी की दौड़ मस्जिद तक और हम लड़कियों की पार्लर तक, कभी नहीं रुकने वाली!-गायत्री आर्य

‘तुम बेहद खूबसूरत हो’ तो हम लड़कियों की जिंदगी का सबसे ‘डार्लिंग सेंटेंस’ है, जिसे हम ‘आई लव यू’ से भी ज्यादा बार सुनने के लिए बार-बार पार्लर जाना चाहती हैं!

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‘दुनिया की सबसे खूबसूरत कृति स्त्री है’ सुनकर हम इतराती हैं और ‘तुम बेहद खूबसूरत हो’ तो हम लड़कियों की जिंदगी का सबसे ‘डार्लिंग सेंटेंस’ है. इसे तो हम ‘आई लव यू’ से भी ज्यादा बार सुनना चाहती हैं. यह बात और है कि इस बात को हम जितनी भी बार सुनती हैं, उतना ही खुद को सदा-सर्वदा-सर्वाधिक सुंदर बनाये रखने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लादती भी जाती हैं. सदा सुंदर दिखने की संभवतः यह इकलौती ऐसी जिम्मेदारी होगी जिसे हम पूरी ईमानदारी से, बिला नागा, आजीवन पूरी करते चले जाना चाहती हैं. इसके लिए हम खुद को भूखा रखने, शरीरिक दर्द झेलने से लेकर अपने बेहद कंजूसी से बचाए गए बहुत सारे पैसे एक झटके में खर्च करने के लिए सोचने में एक मिनट का समय भी नहीं लेतीं. इसमें हमारा साथ निभाता है ब्यूटी पार्लर.
नाओमी वुल्फ लाख कहें कि लड़कियों की सुंदरता पुरुषों द्वारा फैलाया गया एक मिथ है. लेकिन हममें से ज्यादातर लड़कियां/महिलाएं इस बात पर ध्यान तो दूर कान भी नहीं देंगी. हम ऐसी किसी बहस में पड़ना ही नहीं चाहतीं कि यह वायरस पुरुषों ने फैलाया है या जन्मजात हमारे शरीर में था. हम तो बस सुंदर दिखना चाहती हैं. यह कहना भी शायद गलत नहीं होगा कि होश संभालने के बाद, पूरी जिंदगी में हम सबसे ज्यादा सिर्फ सुंदर और आकर्षक दिखने के बारे में ही सोचती हैं.सुंदर दिखने का ख्याल, किसी भी दूसरी चीज से ज्यादा लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़ाता है. बहुत सारी लड़कियां/महिलाएं सिर्फ व्यक्तिगत जीवन में ही नहीं बल्कि अपने काम करते हुए भी सुंदर और स्मार्ट दिखने की जरूरत शिद्दत से महसूस करती हैं. शायद इसीलिए नोएडा में रहने वाली वाली नेहा शर्मा ब्यूटी पार्लर को अपने काम से भी ज्यादा जरूरी मानती हैं. उनका कहना है कि ‘मैं टीसीएस में काम करती हूं और मेरे जॉब प्रोफाइल में लुक्स का बड़ा रोल है. मुझे हर समय बहुत प्रजेंटेबल दिखना होता है, इसी से मेरा आत्मविश्वास बनता है. सो मैं फेशियल, पैडिक्योर, मैनिक्योर, हेयर कलरिंग के लिए महीने में दो-तीन बार पार्लर जाती ही हूं. किसी पार्टी या शादी में जाना हो तो उसके लिए अलग से जरूर जाती हूं.’
लड़कियों के साथ यह विडंबना ही है कि वे अपने स्वास्थ्य से कई गुना ज्यादा अपनी सुंदरता पर फोकस्ड होती हैं. ऐसी लड़कियां अपवादस्वरूप ही मिलेंगी जो कि महीने में हजार-पांच सौ रुपये नियमित रूप से जूस या फल खाने पर खर्च करती हों. लेकिन ऐसी लड़कियों की बहुत बड़ी तादाद है जो हर महीने हजारों रुपए पार्लर जाने पर ही खर्च कर देती हैं. बाकी फिर अपनी कमाई पर निर्भर करता है कि जेब लोकल फेशियल ही अफोर्ड करती या किसी बड़ी कंपनी का महंगा फेशियल और मेकअप. जैसे-जैसे सेलरी बढ़ती है, पार्लर के खर्च में भी बढ़ोत्तरी होती जाती है.
एचसीएल में काम करने वाली, दिल्ली की प्रियंका बिष्ट बताती है, ‘गुड लुक्स मेरे लिए बहुत मायने रखता है. मैं हमेशा स्मार्ट और अट्रैक्टिव दिखना चाहती हूं इसलिए मैं महीने में दो बार तो कम से कम पार्लर जाती ही हूं. मुझे वैक्सिंग वगैरह कराना पर्सनल हाइजीन के लिए भी जरूरी लगता है.’ प्रियंका की तरह बहुत सी लड़कियों के लिए सफाई का एक मतलब हाथ-पैरों के बालों की वैक्सिंग करवाना भी है. इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि इससे त्वचा की मृत कोशिकाएं हट जाती हैं. हालांकि वैक्सिंग के बाद भी शरीर से मृत कोशिकाएं हटाने के लिए क्लींजिंग-टोनिंग-मॉश्चराइजिंग की जरूरत रह जाती है. ऐसे में सिर्फ चिकने हाथ या टांगों की चाह के लिए करवाई गई वैक्सिंग के लिए हाइजीन का बहाना क्यों दिया जाता है, समझना मुश्किल है और नहीं भी.
बहुत सारी लड़कियां/महिलायें अपने बायफ्रेंड/पति को अपनी खूबसूरती से घायल न सही तो कम से कम प्रभावित कर सकें, इसके लिए भी पार्लर जाती हैं. लखनऊ की सोनम मिश्रा ईमानदारी से स्वीकार करती हैं कि उनके ग्रुप की सभी लड़कियां नियमित रूप से पार्लर जाती हैं. वे बताती हैं ‘बिना पार्लर के तो हम जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते. हमारे ग्रुप की लड़कियों में ही एक किस्म का कॉम्पिटीशन रहता है कि कौन कितनी ज्यादा स्टाइलिश दिख रही है. साथ ही अपने-अपने बायफ्रेंड की पसंद के हिसाब से भी हम लोग कई चीजें करती हैं. जैसे मेरे बॉयफ्रेंड को मेरे वैक्स किये हुए चिकने हाथ काफी पसंद हैं तो मेरे लिए ऐसा करना जरूरी हो जाता है.’
ज्यादातर लड़कियों के लिए कई बार सुंदर दिखना एक किस्म का इम्तिहान भी होता है - कि वे किसी खास मौके पर कितना सुंदर (कातिलाना) दिख सकती हैं. यही कारण है खास पार्टी या शादी-ब्याह के मौकों पर तो महिलाओं का पार्लर जाना लगभग जरूरी ही हो जाता है. हरियाणा में रहने वाली प्राइमरी टीचर ऋतु यादव का कहना है, ‘आकर्षक दिखना किसे बुरा लगता है. आम दिनों में तो थोड़ा कम-ज्यादा चल जाता है लेकिन शादी-पार्टी वगैरह के समय तो पार्लर जाना ही है. इससे मुझे अपने आप में ये एहसास रहता है कि मैं भीड़ से अलग दिख रही हूं.’ यहां पर यह एक सवाल किसी के भी जेहन में उठ सकता है कि किसी मौके और जगह पर अगर सभी लड़कियां पार्लर से ही आ रही हों तो कोई एक उनमें से अलग कैसे दिख सकती है!
ऐसी लड़कियों/महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है जो मेकअप या फेशियल आदि के लिए तो पार्लर जाना कतई जरूरी नहीं समझतीं लेकिन कुछ और तरीकों से सुंदर दिखना और इसमें बढ़ोत्तरी के लिए कम से कम आई ब्रो बनवाना तो उन्हें भी जरूरी लगता है. अहमदाबाद की नेहा पटेल जो खुद पेशे से एक डाइटीशियन हैं, मेकअप के ऊपर हेल्दी डाइट को तरजीह देती हैं. नेहा बताती हैं, ‘मैं महीने में एक बार सिर्फ आई ब्रो बनवाने जरूर जाती हूं. बाकी मेरा मानना है कि चेहरे पर ग्लो के लिए अच्छी डाइट लेना और खुश रहना सबसे जरूरी है. सो मैं अपनी खूबसूरती के लिए इन दोनों चीजों का बहुत ख्याल रखती हूं.’
मिस इंडिया, मिस वर्ल्ड जैसी सौंदर्य प्रतियोगिताओं ने ब्यूटी पार्लर को महिलाओं के जीवन की सबसे जरूरी चीज बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है. आज के समय में ज्यादातर लड़कियां/महिलाएं सोचती हैं कि पार्लर उनके जीवन की बेसिक नीड है. यह महज इत्तेफाक नहीं है कि भारत का सौंदर्य उद्योग अमेरिका और यूरोपियन मार्केट के मुकाबले दोगुना तेजी से बढ़ रहा है. और तमाम भारतीय सुंदरियों की वैश्विक सौंदर्य प्रतियोगिताओं में जीत और ब्यूटी पार्लर इसकी जड़ हैं. आज स्थिति यह है, जो महिलाएं अपने पूरे जीवन में कभी पार्लर नहीं गईं, वे भी शादी-ब्याह के मौकों पर वहां जाने लगी हैं.
जोधपुर में पिछले 25 साल से पार्लर चला रहीं रचना बताती हैं, ‘जब मैंने ये काम शुरू किया, तब मेरे यहां कॉलेज जाने वालीं या कामकाजी लड़कियां ज्यादा आती थीं. लेकिन आजकल तो बड़ी उम्र की औरतें भी आती हैं. कुछ तो आई ब्रो बनवाने नियमित आने लगी हैं, बाकी शादी के मौकों पर तो ऐसी शायद ही कोई महिला हो, जो पार्लर न आती हों.’
ऐसी स्थिति को देखते हुए इस मामले में मेरा व्यक्तिगत अनुभव अनोखा ही कहा जाएगा. आज से 11 साल पहले जब शादी के समय मैं पहली बार पार्लर गई तो वहां काम करने वाली लड़कियां यह जानकर लगभग शॉक्ड थीं कि कोई इतने समय तक पार्लर जाए बिना कैसे रह सकता है.
जहां एक तरफ सुंदर दिखने के लिए पार्लर जाना बुनियादी जरूरत-सा बन गया है, वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसी भी लड़कियां/महिलाएं इस दौर में हैं, जो प्रचलित चलन के बजाय सुंदरता के अपने पैमाने गढ़ने में यकीन रखती हैं. जैसे सत्याग्रह में हमारी सहयोगी अंजलि मिश्रा ब्यूटी पार्लर की जरूरत को सिरे नकारती हैं. वे हंसते हुए बताती हैं कि ‘सिवाय बाल कटवाने के, मैं वहां जाना पसंद नहीं करती. एक बार जब मैं आई ब्रो बनवाने गई तो बाल से ज्यादा मेरे आंसू गिरे, सो मैंने वहां जाना छोड़ दिया. मुझे लगता है पार्लर जाने के लिए आपमें दर्द सहने की क्षमता होना भी जरूरी है.’ मजे-मजे में कही गई अंजलि की इस बात को बनारस में रहने वाली इन्श्योरेंस एडवाइजर दुर्गा उपाध्याय का समर्थन भी मिलता दिखता है. ‘मैं तो सोचती हूं कि ये सब चीजें दूसरों को दिखाने के लिए लड़कियां ज्यादा करती हैं. उनके पति या बॉयफ्रेंड उन्हें जैसा देखना चाहते हैं, वैसे-वैसे वे सब करती हैं. दूसरों को सुंदर दिखने के लिए दर्द बर्दाश्त करना मेरे लिए बड़ा अजीब सा ख्याल है.’ दुर्गा जिसे अजीब ख्याल कह रही हैं, असल में वह पार्लर जाने और खूबसूरत दिखने की सोच से जुड़ा सच है.
असल में इस शरीर के साथ हम लड़कियों का द्वंद्वात्मक रिश्ता है. एक तरफ यह मादा शरीर ही हमारे शोषण का सबसे बड़ा आधार है. दूसरी तरफ हममें से कइयों को लगता है कि यह देह की खूबसूरती ही हमें लाइमलाइट में रखती है. इस कारण फेमिनिज्म के तमाम नारों को एक तरफ रखते हुए, हम बार-बार, तरह-तरह के कष्ट लेकर भी सुंदर दिखने के सारे पराक्रम करना चाहती हैं. इस बात पर कोई ध्यान दिये बिना कि दूसरों के लिए किसी खास तरह से सुंदर दिखने की कवायदें हमें क्यों करनी चाहिये? (अपवाद यहां भी हैं.)
सुंदर, आकर्षक और स्मार्ट दिखने का कीड़ा हमारे दिमाग में सबसे ज्यादा कुलबुलाता है. जब-जब ये कुलबुलाहट बढ़ जाती हैं, हम तुरंत इसे शांत करने के लिए पार्लर की तरफ भागती हैं. हम जीवन भर खुशी-खुशी इस कीड़े को पोसना चाहती हैं, अपने पैसे, समय, अटेंशन देकर या फिर दर्द सहकर भी. मैं सोचती हूं कि मुल्ला जी की दौड़ मस्जिद तक और हम लड़कियों की दौड़ पार्लर तक कभी नहीं रुकने वाली!
(आभार: गायत्री आर्य, लेख मूल रूप से satyagrah के लिए लिखा गया है)

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