महिलाओं का ‘खतना’ एक हिंसात्मक कुप्रथा-स्वाति सिंह



बात सौ साल पहले की हो या आज के हमारे इस आधुनिक युग की| समाज के हर परिपेक्ष्य में बदलावों की भरमार देखने को मिलती है| लेकिन इसी समाज के कुछ पहलू ऐसे हैं जिनकी दशा में आज भी कोई बदलाव देखने को नहीं मिलता|शर्त बस ये है कि बदलाव की तह तक जांचना हो| इन्हीं पहलुओं में से एक हैं – महिलाओं की प्रस्थिति|
साल चाहे जो भी रहा है, महिलाओं की प्रस्थिति हमेशा संघर्ष के कटघरे में खड़ी दिखाई पड़ती है| शायद यही वजह है कि महिलाओं के संदर्भ कहा जाता है कि उनपर हिंसा का इतिहास बेहद पुराना है| लेकिन इन हिंसाओं को खत्म कैसे किया जाए? इसके लिए इन हिंसाओं को समझना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि धर्म-संस्कृति के नामपर चलाई जाने वाली ढ़ेरों प्रथाएं अपनी परतों में महिला हिंसा के वीभत्स रूप को समेटे हुए है| हाल ही में एक ट्रेनिंग के दौरान मुझे मुस्लिम के दाऊदी बोहरा समुदाय से जुड़ी एक ऐसी प्रथा के बारे में पता चला जिसने ट्रेनिंग में आये सभी साथियों के रोंगटें खड़े कर दिए| ये प्रथा थी – महिलाओं का खतना,जिससे दाऊदी बोहरा समुदाय की महिलाओं को गुजरना पड़ता है|
इससे पहले मैंने सिर्फ मुस्लिम समुदाय में पुरुषों के खतना प्रथा के बारे में सुना था| लेकिन महिलाओं के साथ खतना प्रथा को जानना मेरा पहला अनुभव था|ट्रेनिंग के दौरान हमलोगों को इस प्रथा पर एक प्रजेंटेशन के बारे में बताया गया, जिसे हमलोगों के साथ की ही प्रतिभागी सालेहा पाटवाला ने समझाया जो खुद भी दाऊदी बोहरा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और सालेहा खुद भी मात्र साल की छोटी उम्र में इस प्रथा से गुजर चुकी है| उन्होंने अब इस कुप्रथा को खत्म करने का बीड़ा उठाया है|
एफ़जीएम पर ज़्यादातर बातचीत फुसफुसा कर ही की जाती है, कम से कम अब तक|
इस समुदाय में ही महिलाओं का खतना क्यों किया जाता है? या इस प्रथा में क्या होता है? ऐसे कई सवाल आपने जहन में उठ रहे होंगें, तो आइये इस कुप्रथा को विस्तार में समझने की कोशिश करते हैं-

दाऊदी बोहरा समुदाय का परिचय?

महिलाओं में खतना प्रथा का चलन दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में सबसे अधिक देखा जाता है | दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय, शिया मुसलमानों माने जाते हैं|यह समुदाय मुस्लिम महिलाओँ के खतना को एक धार्मिक परंपरा मानता है|दुनिया में इनकी संख्या लगभग 25 लाख से कुछ अधिक है| आमतौर पर ये काफी समृद्ध, संभ्रांत और पढ़ा-लिखा समुदाय है, जो मुख्यतः व्यापारिक कौम है|
भारत में दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के लोग गुजरात के सूरत, अहमदाबाद, जामनगर, राजकोट, दाहोद, और महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे व नागपुर, राजस्थान के उदयपुर व भीलवाड़ा और मध्य प्रदेश के उज्जैन, इन्दौर, शाजापुर, जैसे शहरों और कोलकाता व चैन्नै में बसते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, दुबई, ईराक, यमन व सऊदी अरब में भी उनकी अच्छी तादाद है। मुंबई में इनका पहला आगमन करीब ढाई सौ वर्ष पहले हुआ। यहां दाऊदी बोहरों की मुख्य बसाहट मुख्यत: भेंडी बाजार, मझगांव, क्राफर्ड मार्केट, भायखला, बांद्रा, सांताक्रुज और मरोल में है। दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग भारत में सबसे अधिक शिक्षित समुदायों में से एक माने जाते हैं|

कैसे होता है महिलाओं का खतना?

खतना की प्रक्रिया चार चरणों में पूरी होती है|पहली चरण में मादा जननांग के बाहरी भाग (clitoris) को पूरी तरह या आंशिक रूप से काटकर हटा दिया जाता है| दूसरे चरण में योनि की आंतरिक परतों को भी काटकर हटाया जाता है| तीसरा चरण इन्फ्यूब्यूलेशन का होता है, जिसमें योनि द्वार को बांधकर छोटा कर दिया जाता है| इससे प्रक्रिया का दुष्परिणाम सेक्स के दौरान और प्रसव के दौरान भी नजर आता है|

खतरनाक खतने का दर्दनाक रूप

खतना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मादा जननांग के ऊपरी भाग को गैर-चिकित्सा कारणों से काटकर निकाल दिया जाता है| इस प्रक्रिया का कोई शारीरिक फायदा महिलाओं को नहीं होता है| इस प्रक्रिया में अत्यधिक रक्तस्राव होता है और इसके बाद महिलाओं में पेशाब की समस्या होने लगती है| साथ ही कई तरह के संक्रमण और प्रसव के दौरान जटिलताएं भी उभर आती हैं, जिसके कारण कई बार नवजात की मौत भी हो जाती है| जब लड़की छोटी होती है तभी उसके साथ इस तरह की क्रिया को अंजाम दिया जाता है|

छोटी उम्र में होता है खतना

बोहरा समुदाय में लड़कियों की बेहद छोटी उम्र जैसे 6 से 8 साल के बीच ही खतना करा दिया जाता है|इसके अंतर्गत क्लिटरिस के बाहरी हिस्से में कट लगाना या बाहरी हिस्से की त्वचा को निकाल दिया जाना शामिल होता है|खतना के बाद हल्दी, गर्म पानी और छोटे-मोटे मरहम लगाकर लड़कियों के दर्द को कम करने का प्रयास किया जाता है|

कुतर्कों के ढेर पर टिका खतना प्रथा

सैय्यदना के एक प्रवक्ता ने सलाह दी थी कि “बोहरा महिलाओं को समझना चाहिए कि उनका धर्म इस प्रक्रिया की हिमायत करता है और उन्हें बिना किसी बहस के इसे अपनाना चाहिए|
अकसर यह देखा गया है कि परंपराओं के नाम पर महिलाओं का शोषण होता है| खतना भी उसी का हिस्सा है| इसके जरिये ना सिर्फ महिलाओं की सेक्स इच्छा को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है, बल्कि उसे कई तरह की यातना झेलने को भी मजबूर किया जाता है| माहवारी और प्रसव के दौरान उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है|
बीबीसी से बात करते हुए बोहरा मुस्लिम समुदाय से संबंधित एक महिला के अनुसार क्लिटरिस को बोहरा समाज में हराम की बोटी कहा जाता है| बोहरा समुदाय में यह भी माना जाता है कि इसकी मौजूदगी से लड़की की यौन इच्छा बढ़ती है और इसे रोकना चाहिये|

ऐसा माना जाता है कि क्लिटरिस हटा देने से लड़की की यौन इच्छा कम हो जाती है और वो शादी से पहले यौन संबंध नहीं बनाएगी|

भारत से नदारद हैं आँकड़े

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार हाल में ही एफजीएम पर रोक लगाने की लेकर दायर की गई एक याचिका के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय से जवाब मांगा था|
बोहरा मुस्लिम समुदाय से संबंधित एक महिला के अनुसार क्लिटरिस को बोहरा समाज में हराम की बोटी कहा जाता है|
मंत्रालय ने अपने जवाब में बताया था कि सरकार के पास इससे संबंधित कोई भी आपराधिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं ह|वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन द्वारा फरवरी 2017 में एक फैक्ट रिपोर्ट जारी की गयी है जिसके तथ्य ना सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि महिलाओं की जिंदगी की एक ऐसी सच्चाई से रूबरू कराते हैं, जो रूह कंपा देने वाली है|WHO के अनुसार विश्व जनसंख्या में 20 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जो अमानवीय व्यवहार का शिकार होती हैं और वह भी बिना वजह| इन 20 करोड़ महिलाओं के जननांग के बाहरी हिस्से को पूरी तरह काट कर निकाल दिया है, जो अमानवीय तो है ही काफी पीड़ादायक भी है|  इस प्रक्रिया को Female genital mutilation कहा जाता है| यह परंपरा अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया में कायम है| भारत में भी यह परंपरा व्याप्त है|

मानवाधिकारों का उल्लंघन

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार “एफ़जीएम की प्रक्रिया में लड़की के जननांग के बाहरी हिस्से को काट दिया जाता है या इसकी बाहरी त्वचा निकाल दी जाती है|”इस भयावह प्रकिया को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों का उल्लंघन मानता है| साल 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसे दुनिया से खत्म करने के लिए एक संकल्प लिया गया|

अंतर्राष्ट्रीय दिवस

महिलाओं के साथ होने वाली इस निर्मम और भयावह खतना नामक प्रक्रिया के खिलाफ जागरुकता बढ़ाने का फैसला भी लिया गया|इस प्रक्रिया को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 6 फरवरी को मनाने के लिए घोषणा की|

भारत में बैन करने की मांग

महिलाओं के खतने से संबंधित इस निर्मम प्रक्रिया को दुनिया के कई देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, यूके, अमेरिका, स्वीडन,डेनमार्क और स्पेन आदि में बैन कर दिया करके इसे अपराध घोषित किया जा चुका है|भारत में सहियो और जैसी गैर सरकारी संस्थाएं जो महिलाओं के लिए काम करती हैं इस प्रक्रिया को बैन करने की मांग लगातार कर रही हैं|
भारत में चेंजडॉटओआरजी की राष्ट्रीय प्रमुख प्रीति हरमन ने बीबीसी को बताया, “एफ़जीएम पर ज़्यादातर बातचीत फुसफुसा कर ही की जाती है, कम से कम अब तक|””भारत में पहली बार महिलाओं के एक समूह ने इस बारे में बात की है. समूह में शामिल महिलाएं एफएमजी को झेल चुकी हैं| उनका संदेश ऊंचा और साफ़ है- एफ़जीएम पर रोक लगनी चाहिए|”कला इतिहासकार हबीबा इंसाफ़ भी बोहरा समुदाय से हैं और उन्होंने इस याचिका पर हस्ताक्षर भी किए हैं|

सोशल मीडिया के ज़रिए जारी है मुहिम

FGM को महिला अधिकारों का हनन मानते हुए कई लोग इसके विरोध में सामने आयीं हैं|एक महिला जो खुद इस परंपरा से पीड़ित हैं ने बताया कि उन्हें अब भी याद है जब वह मात्र सात वर्ष की थीं, तब उनके साथ यह दर्दनाक हादसा हुआ था|इन लोगों ने इस परंपरा के खिलाफ और इसे गैरकानूनी घोषित करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए आनलाइन अभियान शुरु किया है| इन्होंने एक ग्रुप बनाया है Speak Out on FGM| इस ग्रुप ने वेबसाइट लॉन्च किया है ‘Change.org’ जिसके जरिये पीटिशन दाखिल किया जा रहा है और इस परंपरा का विरोध किया जा रहा है| अब तक हजारों लोग इस अभियान का हिस्सा बन चुके हैं| अब तो सोशल मीडिया फेसबुक और व्हाट्‌सएक के जरिये भी इस परंपरा का विरोध किया जा रहा है| इस हिंसात्मक कुप्रथा के लिए जरूरी है कि हम सभी एक होकर आवाज़ उठाये और इसके खिलाफ़ अपने विरोध को सक्रियता से दर्ज करवाएं|
(आभार: स्वाति सिंह, लेख मूल रूप से feminisminindia.com के लिए लिखा गया है)


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