खाप पंचायतों के अमानवीय माइडसेंट को बदला कैसे जाए?- प्रत्युष प्रशांत

महीने भर पहले अंकित सक्सेना की ऑनर किलिंग के बाद पिछले दिनों उन रणबाकुरों की खबरें हरियाणा से आ रही है जिन्होंने जींद, महेंद्रगढ़, सोनीपत और झज्जर ज़िलों में चार अलग-अलग घटनाओं में दो युवक और युवतियों की हत्या कर दी। ऑनर किलिंग पर सरकारें अपने कम्प्रोमाइज़ की पॉलिटिक्स के कारण चुप हैं, लुटियन मीडिया टीआरपी के दवाब में कुछ घंटो तक इन खबरों को चलाने के लिए विवश है और न्यायपालिका ने ऑनर किलिंग पर अपना क्षोभ और रोष दोनों ज़ाहिर किया है।

फोटो प्रतीकात्मक है।
पिछली सुनवाई में देश की शीर्ष अदालत ने कहा, “अगर कोई बालिग महिला और पुरुष शादी करते हैं, तो परिवार, रिश्तेदार, समाज या खाप उस पर सवाल नहीं कर सकते।” ज़ाहिर है कि कोई भी कारण कितना भी गहरा क्यों न हो, पर प्रेम करने वालों और युवा शक्ति का दंभ भरने वाले देश में युवाओं की इतनी जघन्य हत्याएं कहीं से भी उचित नहीं कही जा सकती हैं।
27 मार्च को पुन: चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच जिसमें जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूर्ण भी शामिल थे ने कहा अलग समुदायों से आने वाले 2 वयस्क अपनी मर्ज़ी से शादी करते हैं तो उनके किसी रिश्तेदार या तीसरे शख्स न तो उन्हें धमकाने या फिर उन पर हिंसा करने का अधिकार होगा।” बेंच ने खाप पंचायतों के फैसलों को अवैध करार देते हुए कहा कि ऑनर किलिंग पर लॉ कमीशन की सिफारिशों पर विचार हो रहा है। जब तक नए कानून नहीं बन जाता तब तक मौजूदा आधार भी ही कार्रवाई होगी। 
न्यायालय ने अपने फैसले में गैरजातीय विवाह को भी शामिल करते हुए कहा कि राज्य सरकारों को चाहिए कि वे शादीशुदा जोड़े को सुरक्षा दें। अगर जोड़े को धमकी दी जाती है तो उन्हें मैरिज अफसरों से इस बात की शिकायत करनी चाहिए। कोई भी खाप पंचायतें समाज के पहरेदार की तरह काम न करें। दो वयस्कों की शादी कानून द्वारा तय होती है। 
खाप पंचायत के प्रमुख ने नये फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि  ‘हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करेंगे। हम वेदों को मानते हैं और वेदों में समगोत्रीय विवाहों की अनुमति नहीं दी गई है। एक ही गांव में रह रहे लोग भाई-बहन होते हैं, वे पति-पत्नी कैसे बन सकते हैं?’
ज़ाहिर है खाप पंचायत अब सगोत्रीय विवाह को धार्मिक रंगरोगन से जीतने की कोशिश करना चाहती है। इस मुद्दे से लड़ने के लिए एक नहीं कई मोर्चो पर मुस्तैद होने की जरूरत है। एक छोटी सी चिंगारी बहुत कुछ स्वाहा कर सकती है।
ध्यान देने वाली बात है कि समगोत्र विवाह के साथ-साथ समाज, अन्तरजातीय और अन्तरधार्मिक विवाह के भी विरोध में है। पर बात केवल इतनी सी नहीं है, क्योंकि इसके अन्दर छुपे कारणों की जड़ अधिक गहरी है। जिसकी वजह से “पंच परमेश्वर” में आस्था रखने वाला ग्रामीण समुदाय अपनी सत्ता का दुरुपयोग एक ऐसे नशे में परिवर्तित हो गया है जिसमें युवाओं के माता-पिता, समाज सभी एक ही भूल करने में मशरूफ हो गए हैं।
ऑनर किलिंग के पीछे पहला पहलू लड़कियों का खुद अपने बारे में निर्णय लेना है। कैसे एक लड़की अपने सारे फैसले खुद ले सकती है? जो आज तक हमारी संपत्ति या इज्ज़त का प्रतीक रही है, जिसे हमने मनमाने ढंग से पहले पिता, भाई की कैद में, फिर अपनी मर्ज़ी से ब्याहे पति की कैद में और फिर बेटे की कैद में रखा, वह थोड़ा पढ़ लिख कर अपनी खुद मुख्तारी कैसे कर सकती है?
इंसान या इंसानी सोच या चाहत रखने का अधिकार किसने दे दिया। जब वह भी सोचने या महसूस करने लगे जैसे कि हम तो उसका अस्तित्व मिटा देना ही अच्छा है। इसलिए जब सर्वोच्च न्यायालय ने खाप पंचायतों के फैसलों को चुनौति दी तो पंचों ने लड़कियों के भ्रूण हत्या तक की धमकी दे दी। इससे यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि “महिलाओं के प्रति जितने भी अपराध हैं उसकी शुरुआत घर से ही पहले होती है,जहां वह पैदा होती है।”
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जो फैसले जाति पंचायतें करती हैं, वे सिर्फ परंपरा आधारित नहीं होते, उनके पीछे आर्थिक स्वार्थ भी होते हैं, जिनसे समाज के ताकतवर और समृद्ध लोग जुड़े होते हैं। यह मात्र संयोग नहीं हो सकता है कि ऑनर किलिंग जैसे हिंसक विरोध विवाह के या स्त्री-पुरुष संबंधों के मामलों में ही क्यों दिखता है? चूंकि इससे समुदाय का बुनियादी ढांचा कमज़ोर हो सकता है खासकर खेती और ज़मीन से जुड़े समुदायों में।
इस तरह की एकता से सामूहिक रूप से आर्थिक हितों की रक्षा भी करती है। इसलिए अगर कोई लड़की किसी से प्रेम कर बैठे या समाज के नियमों के विरुद्ध शादी कर ले तो बात हत्या तक पहुंच जाती है। ध्यान रहे इस तरह की परंपरा भारत में उन क्षेत्रों में ही है जो हरित क्रांति के बाद समृद्ध हुआ है। धीरे-धीरे ऑनर किलिंग के मामले में अन्य कई कारण भी जुड़ते चले जा रहे हैं, इन कारणों की पहचान भी जरूरी है।
मसलन, ऑनर किलिंग के मामले जहां कहीं भी देखने सुनने को मिल रहे है वहां आधुनिकता के साथ शिक्षा के कारण खुलापन आया है, लेकिन ऑनर किलिंग के समर्थक समाज के लोगों की पुरानी मान्यताओं के साथ जुड़े हुए है, भले ही वो तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस हो।
ऑनर किलिंग के तमाम मामलों में एक बात समझ से परे है कि “सम गोत्र, अन्तरजातीय, अन्तरधार्मिक एवं एक गांव में विवाह का विरोध एक लोकतांत्रिक मंच पर विश्वसनीय तरीके से हल क्यों नही हो सकता?” शायद जिस तर्क के साथ ऑनर किलिंग समर्थक हिंदू विवाह कानून में बदलाव की मांग कर रहे हैं, वह अव्यवहारिक और अवैज्ञानिक अधिक है इसलिए वह न्यायालय के सामने टिक नहीं पाते हैं। जिसके वजह से “जिसकी लाठी उसकी भैस” वाली कहावत को सही सिद्ध करना चाहते है।
अधिक परेशान करने वाली स्थिति यह है कि आज गांव ही नहीं शहरों में भी धीरे-धीरे दो खेमे बनते जा रहे हैं, युवाओं के और बुज़ुर्गों के। यह खतरनाक ट्रेंड की शुरुआत कर सकता है अगर यह अमानवीय तरीका उल्टे तरीके से काम करने लगा तो स्थिति भयावह हो सकती है। यदि सरकारें, पंचायतें, परिवार लड़कियों और लड़की का हाथ थामने वाले लड़को के विरोध में उकड़ू होकर बैठी रही है तो एक दिन युवा शक्ति पर दंभ भरने वाला देश संवेदनशील एंव बुद्धिमान युवाओं का सम्मान खो देगा।
ऑनर किलिंग जैसी कोई भी घटना समाज, पंचायत, पुलिस, पड़ोसी सब की मिली भगत से ही हो सकती है और पितृसत्तामक मांइडसेट लड़की के स्वनिर्णय के विरुद्ध तो है ही। जब तमाम खाप पंचायते सरकार की नरमी के कारण आक्रामक रवैया अपनाने लगी है और कानून व्यवस्था को चुनौति देने लगी है, तब न्यायालय के मानवीय फैसलों के  साथ-साथ ज़रूरत इस बात की भी है कि इस अमानवीय माइंड सेट को बदलने के लिए भी एकजुट होकर संघर्ष किया जाए। कानूनी दखल के साथ सांस्कृतिक प्रयासों से भी इसका समाधान समाज को भी  खोजना ही होगा।
(आभार यूथ की आवाज लेख मूल रूप से यूथ की आवाज के लिए लिखा गया है
https://www.youthkiawaaz.com/2018/04/khap-panchayat-disobeying-supreme-court/)

टिप्पणियाँ