वैलेंटाइन डे को पश्चिमी सभ्यता का प्रचार बताने वाले क्या एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं?(द टाइम्स ऑफ इंडिया की संपादकीय टिप्पणी)

नैतिकता के कथित पहरुओं को यह समझना होगा कि एक आधुनिक समाज का मतलब अनैतिक समाज नहीं होता. द टाइम्स ऑफ इंडिया की संपादकीय टिप्पणी

वैलेंटाइन डे को पश्चिमी सभ्यता का प्रचार बताने वाले क्या एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं?

बीते लंबे अरसे से देश के कुछ गुट और राजनीतिक समूह एक डर से पीछा नहीं छुड़ा पा रहे हैं. ये लोग प्यार करने वाले जोड़ों और प्रेम विवाहों से आक्रांत हैं. ऐसे गुटों-समूहों के कार्यकर्ता आज के दिन कुछ ज्यादा ही बेचैन हो जाते हैं क्योंकि आज वैलेंटाइन डे है और इसे मनाते हुए देश के कई हिस्सों में दो लोग एक दूसरे के सामने प्यार या दोस्ती का प्रस्ताव रखते हुए फूल या तोहफों का आदान-प्रदान करेंगे. लेकिन यह भी तय है कि इन जोड़ों में से कई डरी हुई नजरों से आसपास भी देखते रहेंगे कि कहीं कोई इन पर हमला न कर दे. लखनऊ विश्वविद्यालय से कल जो खबर आई है, उससे भी प्रेमी जोड़ों के लिए यही इशारा निकल रहा है. इस खबर के मुताबिक विश्वविद्यालय परिसर वैलेंटाइन डे पर बंद रहेगा और यहां किसी भी छात्र-छात्रा के घूमते हुए पाए जाने पर उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी
लखनऊ विश्वविद्यालय के इस आदेश को प्रशासनिक शक्तियों का गलत इस्तेमाल तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसे बेतुका इस्तेमाल जरूर माना जा सकता है. इस तरह के फैसलों से संबंधित प्रशासन कोई भी मकसद हासिल नहीं कर पाते उलटा इनसे यही साबित होता है कि ये युवा पीढ़ी की संवेदनशीलता और समझ से पूरी तरह कटे हुए हैं.
आज भारत की करीब आधी आबादी 27 साल से कम उम्र की है, लेकिन यहां संस्थान ऐसे काम करते हैं जैसे पितृसत्ता को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी इन्हें ही दी गई हो. जरूरी नहीं है कि हर बार ऐसे फैसलों के साथ ‘न्यू इंडिया’ तालमेल बिठा ही ले. लेकिन इसके नतीजे कभी-कभी खतरनाक होते हैं क्योंकि तब ‘नैतिकता’ के पहरुए निजी स्वतंत्रता के अधिकार को चुनौती देने लगते हैं और सरकार और पुलिस इनकी तरफ आंख मूंद लेती है या कभी-कभार इनका समर्थन भी करती है.
इन मामलों में सुरक्षा देने वाले कथित आधुनिक कानूनों में भी कुछ भारी खामियां है. जैसे कि अगर हम विशेष विवाह अधिनियम को ही लें तो इसके तहत विवाह से पहले जोड़ों को सार्वजनिक रूप से इसकी सूचना प्रकाशित करवानी होती है. ऐसे में इन जोड़ों के उन्हीं नैतिकता या सम्मान के कथित रक्षकों के निशाने पर आने की आशंका बढ़ जाती है जिनसे बचने के लिए ये इस तरह का विवाह करना चाहते हैं. ऐसे प्रावधान इन कानूनों को कमजोर करते हैं और पितृसत्ता और उसके स्तंभों जैसे खाप पंचायत को मजबूती देते हैं.
इन हालात के बावजूद उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है. आज भी कुछ लोग अपने-अपने स्तर पर प्रतिरोध की मशाल थामे हुए हैं और आधुनिकता को अपनाते हुए समाज को एक नया रूप देने की कोशिश कर रहे हैं. इसका सबसे ताजा उदाहरण दिल्ली के अंकित सक्सेना का परिवार है. अंकित का एक मुस्लिम लड़की के साथ प्रेम संबंध था और इससे नाराज लड़की के परिवार वालों ने पिछले दिनों दिन-दहाड़े उसकी हत्या कर दी. इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन अंकित के परिवार ने तुरंत इसकी हवा निकाल दी और कहा कि उन्हें सिर्फ हत्यारों को सजा दिलवानी है.
जो लोग वैलेंटाइन डे को पश्चिमी सभ्यता का असर मानते हैं, वे दरअसल एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्हें याद रखना चाहिए कि भारत में हमेशा से प्रेम कहानियां रही हैं. अगर वैलेंटाइन को वात्सायन पर जीत मिली है तो यह पश्चिम की जीत नहीं बल्कि हमारी मार्केटिंग की हार है.
अभी पिछले हफ्ते के आखिरी दिन सोशल मीडिया पर एक मलयालम फिल्म के गाने की क्लिप रिलीज हुई है. इसे वैलेंटाइन डे को देखते हुए ही रिलीज किया गया है. इस वीडियों में एक छात्र और छात्रा आंखों ही आंखों में बात-इशारा करते देखे जा सकते हैं. यह इतना प्यारा और मासूम वीडियो है कि अपलोड होने के कुछ ही घंटों में वायरल हो गया और लाखों लोगों ने इसे बार-बार देखा. इससे भी साबित होता है कि कथित नैतिकता के कथित पहरुए अगर समाज में इतने ही प्रभावशाली होते तो इस वीडियो को इतनी लोकप्रियता कभी न मिली होती.
भावनाओं को हमेशा दबाते रहने की कोशिश एक कुंठित समाज बनाती है और शायद यही वजह है कि भारत में बाल यौन शोषण जैसे इतने मामले सामने आते हैं. एक खुले और आधुनिक समाज का मतलब यह नहीं है कि उसमें अनैतिकता या अराजकता छाई रहती है; इसका एक सीधा मतलब है, एक-दूसरे के निजी अधिकारों का सम्मान करना. (स्रोत)

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