बिहार की शिक्षा को नए चाणक्य की तलाश है, पार्ट-1- प्रत्युष प्रशांत

बिहार में बिहार बोर्ड और 12वीं के परिणाम घोषित होने के बाद आलोचनाओं से घिरे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पत्रकारों के सवाल पर, जब पत्रकारों से ही समाधान के उपाए पूछते है, तो मुझे ही नहीं उन लाखों युवाओं और उनके अभिभावकों को घोर निराशा हो रही होगी, जिन्होंने एक बार नहीं पिछले कई चुनावों में उनको बिहार का नेतृत्व सौंपने के लिए उनके हक में मतदान किया होगा। सा लगता है सुशासन बाबू को नए चाणक्य की तलाश है जो बिहार की शिक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद कर दे।

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि नीतिश कुमार ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए है, पर उसके परिणाम मायूसी और हताशा को बढ़ा रहे हैं। खासकर पत्रकारों को जवाब देते समय उनका जो रुख था, वह यह सिद्ध करता है कि उन्होंने शिक्षा माफिया और दलालों के आगे घुटने टेक दिए हैं।
दो साल पहले एक अयोग्य छात्रा के टॉपर बनने के बाद एक बार फिर से बिहार बोर्ड और 12वीं के परिणाम घोषित करने के बाद आलोचना के घेरे में है। अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन बिहार की शिक्षा बारे में कहा था “एक तरफ बिहार का गौरवशाली शैक्षणिक अतीत है और दूसरी तरफ आज इस राज्य का शैक्षणिक पिछड़ापन। ये सचमुच बहुत कचोटने वाला विरोधाभास है।” आकंड़े बिहार की प्रतिभा के बारे में अलग सच्चाई बयां करते हैं क्योंकि बिहार से काफी अधिक संख्या में अधिकारी निकलते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत खोखली हो चुकी शिक्षा व्यवस्था की अलग तस्वीर बयां करती है।
इस बार एक तरफ 2018 की बिहार बोर्ड की टॉपर कल्पना कुमारी, जिन्होंने “नीट” में भी टॉप किया है आलोचना के घेरे में है तो साथ ही साथ 12वीं के रिज़ल्ट आने के बाद जितने नंबर का एग्जाम था उससे अधिक नंबर मिलने के कारण बिहार स्कूल एग्ज़ामिनेशन बोर्ड भी कटघरे में है. यही नहीं, 12वीं के मात्र 53 फीसदी परिणामों के कारण भी जग-हंसाई हो रही है, सो अलग।
बिहार में नामंकन के बाद, अटेंडेंस की कमी और दिल्ली में आकाश इंस्टिट्यूट से रेग्यूलर क्लासेज़ के कारण कल्पना कुमारी आलोचनाओं में घिरी हुई है कि उन्होंने बोर्ड की परीक्षा को देने के लिए स्कूल की 75% अटेंडेंस कैसे पूरी की? सवाल यह भी है कि आकाश इंस्टिट्यूट से रेगुलर क्लासेज़ करने के दौरान बिहार के स्कूल में न्यूनतम उपस्थिति को कैसे पूरा किया है?  मीडिया- सोशल मीडिया सभी जगहों पर यह चर्चा खासो-आम है।
परंतु, यह बिहार की पूरी शिक्षा व्यवस्था का अर्ध-सत्य है, संपूर्ण सत्य की तस्वीर यह है कि बिहार के स्कूल और कॉलेजों का पूरा ढांचा ही सड़ चुका है, नामांकन के बाद शिक्षकों की कमी के कारण क्लास में उपस्थिति के लिए अटेंडेंस कोई मायने नहीं रखता। क्योंकि स्कूल में शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए कोचिंग या पसर्नल ट्यूटर का सहारा लेना पड़ता है।
मीडिया और सोशल मीडिया के स्टेट्स वीरों ने बिहार की परीक्षाओं में कदाचार और शिक्षकों की अयोग्यता को प्रमुखता से अपने चैनलों और अखबारों की खबरों का विषय ज़रूर बनाया। पर क्या कभी यह सवाल उठाया कि जिस बिहार में 12 लाख बच्चों ने बिहार बोर्ड और 12वीं की परीक्षा दी, उनमें आधे बच्चे ऐसे स्कूलों/कॉलेजों में पढ़ते है जहां शिक्षकों की कमी तो है ही, जो शिक्षक हैं उनकों नियमित वेतन तक नहीं मिल पाता है। बच्चों ने ऐसे सरकारी स्कूलों/कॉलेजों में पढ़ाई की जिनमें फिज़िक्स, गणित, अंग्रेज़ी आदि के शिक्षक ही नहीं थे। बच्चे नामांकित होते हैं, फिर वे परीक्षा फॉर्म भरने के समय ही अपने स्कूलों/कॉलेजों का मुंह देखते हैं। वे अपने किसी शिक्षक को नहीं जानते क्योंकि अमूमन छात्र और शिक्षक की कभी भेंट ही नहीं होती।
किसी इंटर स्कूल/कॉलेज में प्रैक्टिकल नहीं होता, अपवाद हो सकते हैं। यहां तो विश्वविद्यालय शिक्षा का भी आलम यह है कि बच्चा फिज़िक्स, केमेस्ट्री, जूलॉजी आदि में बीएससी ऑनर्स फर्स्ट क्लास की डिग्री पा जाता है लेकिन उसने प्रैक्टिकल कक्ष का मुंह तक नहीं देखा होता है। हां प्रैक्टिकल परीक्षा में वे शामिल होते हैं और अमूमन थ्योरी से अच्छे नंबर लाते हैं।
मैट्रिक पास करने के बाद जब बच्चे इंटर साइंस में एडमिशन लेते हैं तो अपने स्कूल/कॉलेज जाने की फिर कोई ज़रूरत महसूस नहीं करते, क्योंकि वहां पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं है। ऐसे अभिभावक, जो थोड़े जागरूक हैं, एडमिशन दिलाने के तत्काल बाद किसी निजी कोचिंग संस्थान का रुख करते हैं। जिन्हें नियमित स्कूल/कॉलेज जाना चाहिए था, वे नियमित कोचिंग सेंटर जाते हैं। वहीं वे भविष्य के ताने-बाने बुनते हैं, लड़ाइयां करते हैं, प्रेम करते हैं। कोचिंग सेंटर के सर जी ही उनके असली शिक्षक होते हैं।
गांव-गांव, गली-गली, इंटर के कोर्स को पढ़ाने के लिये कोचिंग सेंटर खुले हुए हैं जिनमें 70 प्रतिशत सेंटर्स गुणवत्ता के नाम पर मज़ाक हैं। तो, अधिक सक्षम अभिभावकों के बच्चे इंटर साइंस की कोचिंग के लिये पटना, मुज़फ्फरपुर, भागलपुर आदि बड़े शहरों में चले जाते हैं जिन पर खूब खर्च होता है।
इस बार की इंटर साइंस की टॉपर तो बिहार के शिवहर ज़िले के किसी नामालूम इंटर स्कूल की छात्रा थी और दिल्ली में रहकर कोचिंग कर रही थी। जो अभिभावक सक्षम नहीं हैं, जिनकी संख्या ज़्यादा है, उनके बच्चे कोचिंग में एडमिशन नहीं ले पाते, वे भगवान भरोसे अपने को छोड़ देते हैं।
कला विषयों के 90 प्रतिशत बच्चे किसी कोचिंग में नहीं जाते। जागरूक बच्चे घर पर ही पढ़ते हैं, बाकी घूमते हैं, खेलते हैं, आजकल मिल रहे फ्री डेटा को एंजॉय करते हैं। परीक्षा के समय गेस पेपर्स खरीदकर नकल के भरोसे परीक्षा केंद्र पर पहुंच जाते हैं।
कुछ वर्ष पूर्व परीक्षाओं में नकल के हैरतअंगेज़ वीडियो और तस्वीरें इस तरह देश-दुनिया में वायरल हो गई कि शिक्षा विभाग का पूरा महकमा सकते में आ गया। नतीजा नकल बंद का शाही फरमान जारी हुआ और एसपी, कलक्टर को एक्टिवेट कर दिया गया, शिक्षकों को नकल रोकने की सख्त हिदायते मिल गई। परिणाम हुआ कि तीन चौथाई से अधिक बच्चे फेल।
जब तक नकल का सिलसिला रहा, शिक्षा की तमाम विसंगतियां पर कंबल ढका रहा, अब धीरे-धीरे सारी विसंगतियां सामने है। नकल करते हुए पकड़े गए छात्र और नकल करवाते हुए अभिभावक से जुमार्ने से हुई आमद में बढ़ोतरी ज़रूर हुई। परीक्षा खत्म होने के बाद परीक्षकों से नंबर बढ़वाने का भी एक पूरा नेटवर्क काम करता है इसकी जानकारी शायद ही किसी मीडिया के अलमदारों को होगा।
रिज़ल्ट निकलता है तो हाहाकार मचता है। मूल्यांकन की गड़बड़ियां सामने आती हैं। जो बच्चा आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास कर चुका होता है उसे फीजिक्स में महज़ 2 अंक आने के वाकये सामने आते हैं। किसी को पूरी परीक्षा देने के बावजूद “फुल्ली एब्सेंट” घोषित कर दिया जाता है। हज़ारों बच्चों की अपनी-अपनी शिकायतें, अपनी-अपनी परेशानियां। परेशान, हलकान बच्चों का हुजूम बोर्ड ऑफिस पहुंचता है। गेट बंद, हड़काते संतरी, नदारद हाकिम। बच्चों का धैर्य जवाब दे जाता है। फिर तो हंगामा, लाठीचार्ज, सिर फटना, हाथ टूटना, चैनल वालों की दौड़-भाग।
शिक्षा के पूरे महकमें में फिर हड़कंप, अधिकारियों की मीटिंग दर मीटिंग। सारा ठीकरा शिक्षकों पर फोड़ने की कोशिशें। जनता की नज़रों में शिक्षकों को बदनाम करने वाले बेवजह के बयान। फिर मामला थमने लगता है।
फिर अगले वर्ष की परीक्षा की तैयारियां शुरू। बच्चों के अगले बैच को जिबह करने की तैयारियों में सरकारी अमला जुट जाता है। फिर कोई नई कल्पना कुमारी या कोई दूसरा, फिर किसी के मार्कशीट में जिस विषय का परीक्षा ही नहीं दिया उसमें अधिक नंबर तो जितने नंबर का एग्ज़ाम था उससे अधिक नंबर मिलने का मामला। किसी ने प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग या मेडिकल परीक्षा में अव्वल स्थान पा लिया पर 12वीं के परीक्षा में फेल, शिक्षा महकमें जो जुड़े लोगों का बेतुका बयान और सोशल मीडिया पर छात्र-छत्राओं की योग्यता का लिटमस टेस्ट।
बिहार के लाखों युवा जिस आईने में अपना चेहरा देखना चाहते हैं, वो आईना धुंधला नहीं है उसके पीठ पर चांदी की कलई ही नहीं है सबकुछ आर-पार है।
(आभार, यूथ की आवाज़, लेख मूल रूप से यूथ की आवाज के लिए लिखा गया है)

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