कैराना में तबस्सुम हसन की जीत पर आखिर क्यों फैलाई जा रही है फेक न्यूज़ से नफरत?- प्रत्युष प्रशांत


कल अपने कमरे से लगभग सौ फर्लांग दूर बने मजेंटा लाईन दशरथपुरी मेट्रो स्टेशन के अपने पहले सफर के लिए मेंट्रों परिसर में दाखिल हो ही रहा  था कि वाट्स-अप के मैसेज वीरों का एक मैसेज मिला,
आज वाकई बड़ा खुश हूं, कैराना की हार पर सुबह से दुखी था लेकिन जैसे ही कैराना से सांसद चुनी गई तसव्वुर बेगम ने कहा “यह इस्लाम की जीत है और हिंदुओं की हार है” मज़ा आ गया, वाकई मज़ा आ गया, यह उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो मोदी के विरोध में और जाति की राजनीति को स्थापित करने के लिए तसव्वुर बेगम को वोट दे आए थे और तसव्वुर बेगम ने एक मिनट में उनके भाईचारे में से भाई निकाल कर उन्हें चारा बना दिया और उनकी औकात दिखा दी, वाकई मज़ा आ गया।”
अभी यह मैसेज पढ़ ही रहा था कि दूसरा भी आ गया कि “ये अल्लाह की जीत है और राम की हार है- तसव्वुर बेगम” समझने वाली बात यह है कि  कैराना लोकसभा से उपचुनाव में रालोदा की संयुक्त गठबंधन प्रत्याशी का नाम तबस्सुम हसन है न कि तसव्वुर बेगम।
पर, वैमनस्य की राजनीति में जिसे शत्रु माना जाता है, उसके खिलाफ हर बात सही लगती है फिर तथ्यता और सत्यता की जांच कोई मायने नहीं रखती है क्योंकि राजनीति में जीतना ज़्यादा ज़रूरी लगता है इसलिए समाज को इस तरह के भड़काऊ मैसेज की उत्तेजना से बचना होगा।
यकीन तो था ही इस तरह के बयान कहां से बनते हैं और कैसे वायरल किए जाते हैं, फिर भी तसल्ली के लिए दशरथपुरी मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठा और तकसीद करने के लिए ऑल्ट न्यूज़ और समाचार एजेंसी की बेवसाइट देखने लगा। किसी एजेंसी ने इस खबर की पुष्टि नहीं की थी और ऑल्ट न्यूज़ से इस खबर को फेक न्यूज़ घोषित किया जा चुका था।
साथ ही, तबस्सुम हसन का बयान भी इस तरह के मैसेज पर था “हम तो सब धर्मों का सम्मान करते हैं, हमारा ऐसा कुछ अलग नहीं है। हमेशा जो है हम ये चाहते हैं कि भाई सब इंसानियत में रहे हर इंसान एक-दूसरे से प्यार मोहब्बत से रहे। इनलोगों को जब कोई रास्ता नहीं मिला तो ये फेंक मेसेज से चला चला कर 2019 के लिए रास्ता बनाना चाहते है। हम ऐसे लोग नहीं है न ही हमने ऐसा कुछ कहा है कभी। अल्लाह और राम में फर्क क्या है, मानने वालों की बात है आस्था की बात है जो मानता है दिल से मानता है, दिल से मानने की बात है।”
मेजेंटा मेट्रों में घुसते समय यह खयाल बार-बार ज़हन में उभर रहा था कि इस तरह के फेक न्यूज़ से कैराना के संदेश को धूमिल करने की कोशिश कितने बड़े स्तर पर हो रही है। इसको समझना अधिक ज़रूरी है कि कैराना के वोटरों ने इस लोकसभा में देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश से पहली मुस्लिम महिला जन-प्रतिनिधि को मौजूदा लोकसभा में भेजा है। चिंता यह होनी चाहिए थी कि कमोबेश 19 फीसदी आबादी में उनका कोई चेहरा उनकी खुदमुख्तारी के लिए लोकसभा में नहीं था। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश से एक भी मुस्लिम प्रत्याशी जीत दर्ज नहीं कर सका था। तबस्सुम हसन मौजूदा लोकसभा में इस राज्य से पहली मुस्लिम महिला सांसद बन गई।
तबस्सुम हसन उस आबादी की महिला जनप्रतिनिधि के रूप में चुनी गई है जिस समुदाय के मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर का राज्यवार आकंड़ा तक उपलब्ध नहीं है। बेहतर तालिम के अभाव में मुस्लिम महिलाओं की बड़ी आबादी भावनात्मक लगाव से पारिवारिक भूमिका में बंधे रहना उचित मानती हैं।
फिर ये सवाल भी मुनरिका मेट्रो स्टेशन पहुंचते-पहुंचते ज़हन में उभर चुका था कि इन सवालों पर बहस या विचार तो तब ही किया जा सकता है जब देश का सामाजिक महौल शांत होने के साथ हिंसा मुक्त हो। अशांत महौल के सामाजिक परिदृश्य में इन सवालों की प्रासंगिकता बेहद ज़रूरी होते हुए भी गुम हो जाती है और यही शायद उन्मादी ताकते चाहती हैं कि समाज में हिंसा का महौल बना रहे। एक चिंगारी भर सुलगे और समुदायों को एक-दूसरे से भयभीत कर दिया जाए।
इस माहौल में हमको और हमारे समाज को इतिहास की उन घटनाओं से सीख लेने की ज़रूरत है कि उस राजनीति से बचा जाए जो भले ही हमेशा के लिए नहीं है, पर लंबे समय तक सामाजिक सौहार्द, सद्भावना और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने की कोशिशों में सक्रिय है। समाज का यह संघर्ष अब स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है।
(आभार: यूथ की आवाज: लेख मूल रूप से यूथ की आवाज के लिए लिखा गया है।
https://www.youthkiawaaz.com/2018/06/fake-news-over-tabassum-hasan-victory-in-kairana-by-polls/ )

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