हेल्थ और फिटनेस के लिए भी ज़रूरी है मास्टरबेशन- रचना प्रियदर्शी

हर नयी चीज़ पर चर्चाएं आम होती हैं, ये चर्चाएं ही नये को नया से पुराना बनाती हैं। उसे लोगों के बीच आम कर देती हैं। नयी चीज, नयी प्रतिक्रियाएं, नये विश्लेषण, नयी चर्चाएं, नये विमर्श और फिर नयी सोच, नयी उत्पति, यह सब कुछ सतत विकास की अभिन्न प्रक्रियाएं हैं।

यह बात फिल्मों पर भी लागू होती है। फिल्में आती हैं चर्चाओं के साथ, जिसकी जितनी ज़्यादा चर्चा उसका उतना ज़्यादा प्रचार। ऐसे में कई फिल्में इसी प्रचार को अपने प्रसार का माध्यम बनाती हैं। फिर करोड़ों-अरबों की कमाई करती हैं। “वीरे दी वेडिंग” भी एक ऐसी ही फिल्म है। चर्चाओं का दौर गर्म है और साथ में बॉक्स आफिस कलेक्शन भी।
कुछेक इस फिल्म को “वीर्य दी वेडिंग” बोल रहे हैं, इसका विरोध भी काफी हो रहा है। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम सरीखे सोशल मीडिया साइटों पर गालियां भी खूब पड़ रही है। पड़े भी क्यो ना, इस फिल्म में फीमेल मास्टरबेशन को इतनी बेबाकी से दिखाया जो गया है। दबी चीज़ एक बार फिर से बाहर आ गयी है और आते ही इसने सीधा सब-कॉन्टिनेंट के पुरुष प्रधान समाज के अंतरमन पर चोट किया है। लिहाज़ा, भारत से लेकर पाकिस्तान सब एक होकर बहस कर रहे हैं। इस बीच मज़ेदार बात यह है कि चर्चा जमकर है। कुछ खुले में, कुछ दबे में। मास्टरबेशन अच्छा या बुरा? पुरुष मास्टरबेट करे तो ठीक, महिला करे तो खराब। अच्छा तो कितना अच्छा, खराब तो कितना  खराब? ऐसे ही चंद सवालों का सरल जवाब है यह लेख।
प्रॉब्लम दरअसल यह है कि अभी भी हमारे भारतीय समाज के एक बहुत बड़े तबके के लिए मास्टरबेशन एक ‘गंदा काम’ है। अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं, तो सबसे पहले तो यह जान लें कि मास्टरबेशन का मतलब क्या है? मास्टरबेशन का सिंपल अर्थ है- अपने प्राइवेट पार्टस से खेलना या उनके प्लेजर प्रिंसिपल को समझना। यह सेल्फ एक्सप्लोरेशन की एक प्रक्रिया है, यह इंसान को अपनी शारीरिक और मानसिक जरूरतों तथा संतुष्टि के स्तर समझने का मौका देता है। दूसरे शब्दों में कहें, तो मास्टरबेशन, दरअसल एक सामान्य मनोशारीरिक प्रक्रिया है- पुरुषों के लिए भी और महिलाओं के लिए भी।
यही नहीं हेल्थ और फिटनेस के लिहाज़ से भी यह ज़रूरी है।आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मास्टरबेशन से किसी तरह का नुकसान होने के बजाय इसके कई फायदे हैं :
– मास्टरबेशन एक सेल्फ एक्सप्लोरेशन की प्रक्रिया है अर्थात यह आपको अपने बारे में जानने और खुद से प्यार करने का मौका देता है। विभिन्न शोधों के आधार पर यह साबित हुआ है कि जो लोग मास्टरबेट करते हैं, वे अन्य वैसे लोगों की तुलना में जो ऐसा नहीं करते, अधिक प्रसन्नचित, आत्मविश्वास से पूर्ण और आत्म संतुष्ट होते हैं। वे अपने शरीर, अपने सेंशेनल ऑर्गन्स और खुद को संतुष्ट करने के तरीकों से भली-भांति वाकिफ होते हैं।
उन्हें यह अच्छी तरह से पता होता कि किस तरह की एक्टविटी उन्हें खुशी दे सकती है और कौन-से व्यवहार से उन्हें अनईज़ी फील होता है। अगर किसी महिला या पुरुष को ये जानकारी हो, तो उसके लिए अपने पार्टनर्स को संतुष्ट करना आसान हो जाता है।
– आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि महिलाएं अपने सेक्शुअल इच्छाओं व ज़रूरतों को लेकर अधिक जागरूक नहीं होती। इसी वजह से शारीरिक संबंधों के दौरान ज़्यादातर महिलाएं ऑरगैज़्म लेवल तक पहुंच ही नहीं पाती हैं। उन्हें यह पता ही नहीं होता कि उनके किस बॉडी पार्ट्स का सेंशेसन लेवल कितना है। इसकी एक बड़ी वजह हमारे कल्चरल टैबूज़ हैं, जिसकी वजह से महिलाएं आज भी सेक्स या सेक्शुअल मैटर्स पर खुल कर बात नहीं कर पातीं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि मास्टरबेशन यह जानने का सबसे बेस्ट उपाय है कि अंतरंग क्षणों में किस तरह की एक्टिविटी आपको संतुष्टि दे सकती है।
– सेहत के लिहाज़ से देखें तो मास्टरबेशन एक स्वस्थ प्रक्रिया है। इससे पेल्विक फ्लोर मज़बूत होते हैं, जिसके फलस्वरूप यूरिनरी प्रॉब्लम्स (मसलन जल्दी-जल्दी पेशाब आना, उस पर नियंत्रण न होना आदि) से बचाव होता है। विभिन्न शोधों के आधार पर यह पता चला है कि जब व्यक्ति ऑरगैज़्म के लेवल पर पहुंच जाता है, तो इससे उसके बॉडी में एंडार्फिन हॉर्मोन का स्राव होता है, जिसकी वजह से उसे अच्छी और सुकून भरी नींद आती है। साथ ही, मास्टरबेशन से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है, जिससे हार्ट प्रॉब्लम्स या टाइप-टू डायबिटीज का खतरा काफी कम हो जाता है। महिलाओं  को पीरियड्स के दौरान होनेवाले क्रैम्प्स से निजात दिलाने में भी मास्टरबेशन विशेष तौर से सहायक होता है।
हां, अगर आपके द्वारा इस प्लीजिंग एक्टिविटी को हद से ज्यादा किया गया, तो यह न केवल आपके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ के लिए घातक सिद्ध हो सकती है, बल्कि इससे आपके संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। याद रखें, दुनिया का कोई भी काम बुरा नहीं है, बशर्ते कि उसे हम अपनी लत न बनाये।
अंत में मैं बस इतना ही कहूंगी कि आज स्मार्टफोन और इंटरनेट के जमाने में, जहां हर छोटी-बड़ी जानकारी बड़ों से लेकर छोटे बच्चों तक के पास ऊंगलियों की एक क्लिक पर उपलब्ध है, वहां मुझे लगता है कि ऐसी बातों या ऐसी जानकारियों को छिपाने की नहीं, बल्कि उनके बारे मेंउचित और सही तरीके से समझने की ज़रूरत है, ताकि लोग ऐसे हर सोशली टैबूड मुद्दों के बारे में भी खुलकर अपनी राय व्यक्त कर सकें।
(आभार, यूथ की आवाज़, लेख मूल रूप से यूथ की आवाज के लिए लिखा गया है)

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