भला कहीं पटाखे और मिठाइयां हिंदू मुसलमान भी होते हैं -प्रत्युष प्रशांत
त्योहारों से भरे-पूरे इस देश में, जहां से मैं आता हूं वो
है बिहार। जहां दिवाली अपने साथ लंबी छुट्टी भी साथ में लाता है, दिवाली, उसके दो
दिन बाद भाई-दूज और दो दिन बाद छठ पूजा की शुरुआत जो चार दिनों तक पूरे घर को
मशगूल रखता है, यानी पूरे हफ्ते भर किताब-कांपी स्कूल और टीचर से मुक्ति।
हमारे यहां दिवाली के रोज घरौदें बनाने और मिट्टी के
बर्तनों में मूरमूरे, मिठे बताशें भरे जाने का भी चलन है। घरौंदे और रंगीन पेपरों
से कंदील बनाने की कारीगरी में इस बात का एहसास कभी नहीं रहा या इस बात की सूझ ही
नहीं रही कि दिवाली हिंदूओं का ही पर्व है। गोया इस बात से दिगर मैं तब हुआ आठवी
जमात में हिंदी के पर्चे में दिवाली पर निबंध लिखने की जहमत उठानी पड़ी। पर्चे के
पहले इस बात को टीचर ने बताया था कि निबंध में ये निबंध आ सकता है, इसको देख लेना।
कई किताबों में निबंध पढ़ा और सब जगह यहीं बात लिखी था दीपों का पर्व दिवाली
हिंदुओं का प्रमुख पर्व है, भगवान राम अयोध्या आए थे और लक्ष्मी की पूजा
वगैरा-वगैरा। मन में जो सवाल फांस बन कर अटका पड़ा था कि क्या दिवाली मुसलमान नहीं
मनाते होगे, अगर नहीं बनाते होगे तो करते क्या होगे?
सवाल मेरे जेहन से उतर कर दादाजी तक पहुंचा, तो उन्होंने
कहा कि ईद के दिन जो हमलोग करते है वो भी वही करते है। ईद में हम बधाईयां देते है
और वो कई तरह की सेवई खाते है दिवाली के दिन वो बधाईयां देते है और हम उनको मिठाई
खिलाते है। उसके साथ एक किस्सा सुनाना जो दिलो-दिमाग में पैबंद हो गया। इस किस्से
का मजमूम एक है और अंदाजे बयां अगल-अलग तरीके का है ये बात मुझे बाद में खुद गालिब
को पढ़ने देखने और सुनने के बाद हुई। एक
बार ग़ालिब के किसी हिंदू दोस्त ने बर्फी देते हुए संकोच में पूछ लिया, ‘कहीं
आपको हिंदू के यहां की बर्फी से परहेज तो नहीं?’
ग़ालिब ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ‘आज
मालूम हुआ कि बर्फी हिंदू भी होती है, गोया
जलेबी मुसलमान हुई। इस वाक्यें को दादाजी ने दिवाली के वाक्ये के साथ जोड़ कर सुनाई
और मिर्जा गालिब सीरियल में भी इसीतरह दिखाया भी गया है। इसको ही हिंदी के पर्चे
में बड़ी शिद्दत से लिखा और नंबर भी अव्वल ही रहे।
बचपन
के इस प्रसंग के बाद इस बार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले आने के बाद जिसमें दिल्ली
एन सी आर के इलाकों में पटाखों के बिक्री पर रोक लगाने के बाद प्रसिद्ध लेखक चेतन भगत के बयान के बाद फिर से
यह इल्म हो रहा है कि दिवाली सिर्फ हिंदुओं का त्यौहार है और पटाखों पर रोक,
हिंदुओं के भावनाओं का अपमान है। आज मेरे पास दादाजी की कोई कहानी तो नहीं है न ही
उनके जैसी फाकदिली वाली हाजिर जवाब बातें। अपनी समझदारी से इतनी तो समझ जरूर है कि
कोई भी उत्साह या खुशी का मौका किसी मजहब या किसी कौम का नहीं होता है, खुशियां
बांटने से फैलती है और इसे दूसरों के साथ शेयर करने में ही खुशियों का अपना मजा
है। मेरा मन पटाखों के शोर-शराबे और मीठाईयों की मिठास नहीं दादाजी के सुनाये
कहानी के तरह नई कहानी की तलाश कर रहा है जो मैं यार दोस्तों और साईबर स्पेस के
खिड़कियों पर शेयर कर सकूं और लाईक कमेंट शेयर से अपने मन में दिवाली की खुशी को
चार गुना कर सकूं।
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