नाबालिग पत्नियों के साथ सेक्स को रेप घोषित करना क्यूं बस अधूरी जीत है-प्रत्युष प्रशांत

गांधी जयंती के अवसर पर बिहार सरकार के बाल विवाह को रोकने के लिए “बंधन तोड़” ऐप के बाद, बाल विवाह पर नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध को सुप्रीम कोर्ट ने रेप माना है और इसे नाबालिग लड़कियों के अपने शरीर पर उसके खुद के अधिकार और निर्णय के अधिकार का उल्लघंन है।
कल सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ बनाए गए यौन संबंध को रेप माना है, अगर नाबालिग पत्नी इसकी शिकायत एक साल के अंदर करती है। इसमें सभी धर्मों पर समान रूप से माना गया है। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे बालात्कार के श्रेणी में माना है।
पति-पत्नी के बीच यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र को बढ़ाए जाने की मांग वाली चायिका के जवाब में सरकार ने कहा था कि भारत में बाल विवाह एक हकीकत है और विवाह संस्था की रक्षा होनी चाहिए।
हमारे देश के कानून के हिसाव से शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 साल और लड़कों की 21 साल रखी गई है। इससे कम उम्र में हुई शादी को जुर्म माना गया है। कानून के बावजूद देश में बाल विवाह के कई मामले आते रहे है। जिनके कारण कमोबेश कभी सामुदायिक रीति-रिवाज तो कभी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन ही होते है
मौजूदा फैसला में एक दूरगामी बदलाव माना जा सकता है क्योंकि कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने “वैवाहिक बलात्कार” को पति-पत्नी या परिवार का निजी मामला मानते हुए इसपर निर्णय देने से असहमति जताई थी और भारत सरकार ने भी अपने कंधे झटक दिये थे कि इससे परिवार संस्था का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। जबकि दुनिया के कई देशों ने “वैवाहिक बलात्कार” को अपराध माना है।
इन सबों फैसलों के नज़ीर में हमे फूलमनी दासी का मामला (फूलमनी दासी 10 वर्ष की बाल वधु थी, जिसका अभी तक यौवनारंभ नहीं हुआ था, जब उसका उम्रदराज पति उसके साथ जबरदस्ती कर रहा था तो अधिक रक्तस्त्राव से उसकी मृत्यु हो गई थी।) नहीं भूलना चाहिए, इस घटना के बाद हिंदुस्तान में पहली बार बलात्कार विषय पर बहस की शुरूआत हुई थी। जिसके बाद बी.एम.मालबारी जैसे समाज-सुधारकों ने संघर्ष किया और महिलाओं के संदर्भ में पहला कानून “उम्र का सहमति अधिनियम 1891” में बना उस वक्त विवाह की आयु 12 वर्ष पर सहमति बनी थी, जिसके बाद बाल विवाह के लिए समाज सुधारको ने लंबा संघर्ष किया और धीरे-धीरे कई बदलाव के बाद लड़कियों के विवाह की आयु 18 वर्ष और लड़को के लिए 21वर्ष निधारित किया गया। जो अभी भी शैक्षणिक पिछड़ापन और आर्थिक कमजोरी के कारण जारी है। जाहिर है इस समस्या का समाधान समाज कानूनी विकल्पों से नहीं खोज पाया है इसके लिए सामाजिक जागरूकता और अन्य पहलूओं पर काम करने की जरूरत है।
मौजूदा फैसला ऐतिहासिक फैसला तो है, पर अपने आप में कई कानून के जानकार के अनुसार अधूरा है। पत्नी यदि 12 से 15 के बीच में है तो बलात्कार की सजा दो साल की जेल होगी। विवाह के दायरे में उम्र सहमति के लिए 18 वर्ष का दायरा क्यों बनाया गया है, क्योंकि बलात्कार तो किसी भी उम्र में बलात्कार ही है, किसी भी महिला के लिए यह खुशी और उत्साह का अवसर तो है नहीं। इसमें 18 साल के बाद की महिलाओं के साथ असहमति के बिना बनाए जा रहे यौन संबंध को “वैवाहिक बलात्कार” नहीं माना गया है। जाहिर है कि “वैवाहिक बलात्कार” पर विषय को भारतीय समाज की विविधता, श्रेणीबद्धता, सामुदायिक और कई विरोधाभासों को गहराई से समझने की जरूरत है। हालांकि सवोच्च न्यायालय के पीठ ये स्पष्ट किया है कि वह “वैवाहिक बलात्कार” के विषय पर सुनवाई नहीं कर रहीं है, क्योंकि इस मामले को नहीं उठाया गया है।
अगर बलात्कार के दायरे में देखे तो यह फैसला अधूरी जीत के रूप में ही है जिसका स्वागत किया जा सकता है पर वैवाहिक बलात्कार की लड़ाई के लिए अभी लंबे संघर्ष की जरूरत है।

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