आज़ादी के 70वें वसंत में बिहार की महिलाएं का सफ़र  -प्रत्युष प्रशांत

बिहार देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने पंचायत में चुनावों में 50 फीसदी आरक्षण महिलाओं के लिए किया था। 2006 में बिहार के इस फैसले के बाद उस साल 55 फीसदी महिलाएं ग्राम प्रधान चुन कर आई थी।












स्वतंत्रता दिवस के आस-पास प्रसारित होने वाले विज्ञापनों कि माने तो आजादी के मायने आन-लाईन मार्केटिग साईट और मांलों के खरीददारी में कैश-बैक आफरों तक ही सीमीत है। जबकि आज़ादी के मायने को बटुओं के खर्च तक ही सीमित कर देना, किस तरह की आज़ादी है? इससे अलग बिहार की महिलाओं ने सरकारी योजनाओं और नीतियों के वजह से कई ऐसे बदलाव किये जो सही मायने में आधी आबादी की आजादी के दिशा में बड़ी छलांग कही जा सकती है। पिछले विधानसभा चुनावों में बिहार में महिलाओं की बढ़ी भागीदारी ने पुरुष प्रधान सेट-अप को चुनौती दी, जिसमें महिलाओं की उपस्थिति अब तक रसोई या महिलाओं की बंद दुनिया तक ही सीमित रही थी। यह महिलाओं की उभरती राजनीतिक चेतना के साथ-साथ आजादी को अपने अंदर आत्मसात करने का एक नया सोपान है। महिलाओं के अपने मुद्दे हैं, जो पुरुषों से पूरी तरह से अलग हैं। यह रोजमर्रा की जिंदगी और बेहतर जीवन की उम्मीद है, कि बिहार की महिलाएं भी अपनी अलहदा तस्वीर बयां कर सकती है।
बिहार के गौरवशाली इतिहास के तरह वर्तमान में गौरवशाली पुर्निमार्ण में महिलाओं के विकास में ध्यान रखकर ही सरकार को समावेशी नीति के साथ जन-संवर्धन पर भी काम किया है। मौजूदा मुख्यमंत्री ने अपने पूर्व के शासनकाल में महिलाओं के लिए कुछ नीतियों और योजनाओं से इस उम्मीद को पुख्ता कर दिया। पिछली सरकार की मुख्यमंत्री साईकिल योजना से लड़कियों की हिस्सेदारी उन सड़कों पर बढ़ी है, जहां एक दशक पहले तक पुरुषों का अधिकार हुआ करता था। हाल के कुछ आकंड़े इस बात की गवाही दे रहे है कि बिहार में महिलाओं की स्थिति में कई बदलाव देखने को मिल रहे है, जो महिलाओं के आजादी और आत्मनिर्भरता की नजीर पेश करती है। गरीब, पिछड़े और महिला सशक्तिकरण के मामले में फिसड्डी राज्य की श्रेणी में आने वाला प्रदेश बिहार की महिलाएं अब सशक्त हो रही हैं ऐसा नेशनल फैममी हेल्थ सर्वे 2015-16 के आकड़े बता रहे हैं। यूं तो बिहार में परिवर्तन की बहार 2001 के बाद कई सरकारी योजनाओं और नीतियों के कारण दिखने लगी थी। लेकिन इसके नतीजे अब सामने आने लगी हैं, पूरे देश में जहां घरेलू मामलों में फैसले लेने में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है वही बिहार इस मामलों में दिल्ली से भी आगे हैं।
बिहार में 75 फीसदी महिलाएं घरेलू फैसले लेने में हिस्सेदारी निभाती हैं, वही दिल्ली में ये आंकड़ा एक फीसदी कम यानी 74 फीसदी हीं है। ऐसे में घरेलू हिंसा के मामलों में भी सुधार हुआ है, बिहार इस मामलों में दूसरे नंबर है। मौजूदा सरकार की शराबबंदी की नीति से घरेलू हिंसा के मामलों में अभूतपूर्व सफलता देखने को मिल रही है। बिहार में घरेलू हिंसा के मामलों में साल 2005-06 के मुलाबले साल 2015-16 में 16 फीसदी की कमी आई है। शादी की उम्र में सुधार महिला सशक्तिकरण और साक्षरता का बड़ा पैमाना है। बिहार में एक दशक पहले यानी 2005-06 के मुलाबले 2015-16 में 18 साल से उम्र में महिलाओं की शादी के मामलों में 21 फीसदी की कमी आई है।
महिलाओं की ही जागरूकता का असर है कि राज्य में बच्चों के वैक्सीनेशन के मामले में भी 29 फीसदी का सुधार हुआ है। जागरूक और सशक्त महिलाएं अपने परिवार और बच्चों का अब ज्यादा ख्याल रख पाती हैं। वहीं, महिला सशक्तिकरण के मामले में उत्तर प्रदेश ने भी शानदार प्रगति की है, महिलाओं की शादी की उम्र और फैमिली प्लानिंग का सीधा असर कुल प्रजनन दर (टोटल फर्टिलिटी रेट) पर पड़ता है। NFHS-4 के आंकड़ों के मुताबिक यूपी में 1.1 की कमी आई है. बच्चों के वैक्सीनेशन, घरेलू मामलों में हिस्सेदारी में भी बिहार की महिलाओं में काफी सुधार आया है। ऐसे में साफ है बिहार की महिलाएं सशक्तिकतण की राह पर हैं. अब ये भी जानना जरूरी है कि इस बदलाव के कारण क्या हो सकते हैं कह सकते हैं कि महिलाओं के सशक्तिकरण में पंचायत चुनाव का खास योगदान है। देशभर के स्थानीय चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधत्व बढ़ रही है।
बिहार देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने पंचायत में चुनावों में 50 फीसदी आरक्षण महिलाओं के लिए किया था इसके बाद दूसरे राज्यों ने भी बिहार से सीख ली। 2006 में बिहार के इस फैसले के बाद उस साल 55 फीसदी महिलाएं ग्राम प्रधान चुन कर आई थी। ध्यान रहे कि देश का संविधान पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की 33 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करता है। देश के कुल निर्वाचित सरपंचों में से अभी 44 फीसदी तो महिलाएं ही है। इस प्रत्यक्ष भागीदारी ने प्रधानपतियों का कांन्सेप्ट खत्म किया है. पहले माना जाने लगा था कि प्रधान पति ही गांव के पंचायत चलाते हैं, महिलाएं बस नाम की प्रधान होती हैं। ये मान्यता अब खत्म हो रही है. अब महिला ग्राम प्रधान आगे आकर पंचायत का नेतृत्व कर रही हैं उसके हाथ में सत्ता आने के बाद लड़कियां ज्यादा संख्या में स्कूल जाने लगी है।
बिहार में कम उम्र में लड़कियों की शादी के मामले में भी भारी कमी आई है। सत्ता जब महिलाओं के हाथ में हैं, तो वो फैमिली प्लांनिंग और बच्चों के वैक्सीनेशन जैसी जरूरी कदमों को ज्यादा से ज्यादा उठा रही हैं और दूसरों को भी जागरूक कर रही है। बिहार धीरे-धीरे ही सही विकास और बदलाव की नई पहल के तरफ उन्मुख हो रहा है। बिहार की महिलाएं अपनी स्वतंत्र अस्मिता व अस्तित्व का विकास कर अपने साथ-साथ बिहार को भी विकास के तरफ उन्मुख कर रही है।


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