खुद से खुद को मुक्त करना जरूरी..... # मेरी रातें मेरी सड़क -प्रत्युष प्रशांत
सम्पूर्ण आजादी, संवैधानिक अधिकार और मानवीय गरिमा पाने के
लिए या यों कहे उसे छीनने के लिए # मेरी रातें,मेरी सड़क महिलाओं को राष्ट्रीय स्तर पर हर संभव संघर्ष और
बलिदान का प्रयास है, जो महिलाओं के साथ होने वाले हलिया घटनाओं का प्रतिफल नहीं,
बल्कि कई ऐसे सवालों का जवाब है जो निजी और सार्वजनिक दायरे में होते रहे है.....
71वें साल के आजादी के पूर्व
संध्या पर # मेरी रातें मेरी सड़क उन
सारे सवालों के जवाब का वो पुलिंदा है जो आधी आबादी से निजी और सार्वजनिक दायरे
में हमेशा होते रहते है। गोया, घर से निकलो तो भाई के साथ निकलो, आधी रात में कहीं
मत जाओ, इस तरह से बात मत करो, इस तरह हंसा मत करो। हाल के दिनों में महिला के साथ
हुई घटनाएं और उसपर आ रही लोगों की अर्नगल टिप्णियां इस प्रतिरोध की एक कड़ी कही जा
सकती है। इस कोशिश से सड़कों पर महिलाओं को स्थिति को सहज करने की कोशिश की जा रही
है. दिन हो या रात हो लड़कियों के साथ कोई भी घटना होती है चाहे फिर घर वह घर पर हो
या बाहर. तो पहला सवाल यही चस्पां होता है कि कि वो बाहर सड़क पर क्यों थी, क्या कर
रही थी वहां वो? इसलिए “ये दिन भी मेरा, ये रात भी मेरे, ये
घर भी मेरा, ये सड़क भी मेरी”। इस मुहीम से यह बताने की कोशिश
है कि आधी आबादी इस देश की सैंकंड सिटीजन नहीं है। देश में जितने अधिकार संविधान
ने बाकी लोगों को दिया है फिर आधी आबादी को भी हक है अपनी आजादी को सेलिब्रेट करने
का। वो भी घर के बाहर अपनी मर्जी से अपनी जरूरत से निकल सकती है, चंद आपराधिक और
कुंठित मानसिकता के लोग उससे उसका संवैधानिक हक, उनका घर उनका शहर और उनकी शहर छीन
नहीं सकते है।
महिलाओं
ने अपनी इच्छाशक्ति से वह सब हासिल किया है जिसे वो हासिल करना चाहती है,
चुनौतियों को महसूस किया है और संघर्ष से अपना मुकाम बनाया है। सिर्फ महिला शब्द
भर लग जाने से उन्हें कम साबित नहीं किया जा सकता या सिर्फ महिला होने के कारण
उनका स्पेस निजी और सार्वजनिक दायरे में नहीं छीना जा सकता है। # मेरी रातें मेरी सड़क, यह बताने का प्रयास
है कि महिलाओं या लड़कियों को महिलाओं के सांचे से बाहर निकालकर इंसान के सांचे में
देखने की कोशिश का प्रयास है। वह किसी भी क्षेत्र में सिर्फ और सिर्फ महिला होने
के कारण नहीं, अपनी मेहनत और प्रतिभा के कारण कामयाब है। हर बार दूसरों से अपने
लिए सम्मान मांगने के बजाय इस बार महिलाओं ने खुद अपनी मन की बेड़ियों को तोड़ने के
लिए खुद अपने आप से और समाज से अपनी आजादी के लिए सड़कों पर आई है। बिना किसी संगठन
के, बिना किसी राजनीतिक दल के, बिना किसी सामाजिक कार्यकर्ता के आह्वान पर।
# मेरी रातें मेरी सड़क के आह्वान में कई शहरों, कस्बों से आई लड़कियां यह
बताना चाहती है कि वो किसी पुरुष और लड़कों के खिलाफ नहीं है, वो खिलाफ है उस
मानसिकता के खिलाफ जो घर और सड़क दोनों सुरक्षित नहीं रहने दे रहे है और हर एक
हादसे के लिए उनको ही जिम्मेदार सिद्ध कर दिया जा रहा है। यह एक मुहिम है उस
अंधेरी रात उस डर को तोड़ने का जो उनको घर और सड़क कहीं सुरक्षित रहने नहीं देता।
आधी आबादी के बेखौफ आजादी की नई पहल है # मेरी रातें मेरी
सड़क अभियान...।
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