क्रिकेट का रण-जीत! रणजीत सिंह -प्रत्युष प्रशांत
रणजी ट्राफी में खेलना और
और इस ट्राफी को जीतना प्रथम श्रेणी क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए सम्मान की बात मानी
जाती है, इसमें किए गए प्रदर्शन के आधार पर ही हमारे देश में किसी भी खिलाड़ी का
टेस्ट खेलने का भविष्य भी तय होता है। राजकुमार रणजीत सिंह से जिनके सम्मान में 1935 में पटियाला के महराजा भूपन्दिर सिंह ने भारत के
प्रथम श्रेणी के क्रिकेट टूर्नामेंट का नाम रणजी ट्राफी रखा गया। उन्होंने अपने
क्रिकेट के सफर कि शुरूआत कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के टीम से की, उन्होंने अपने
करिअर में भारत के बजाए इंग्लैड की टीम से साथ बनाना तय किया। क्रिकेट के इतिहास
में यह एक अनोखी बात है कि भारतीय क्रिकेट टूर्नामेंट के प्रथम श्रेणी का सम्मान
रणजी ट्राफी जिस सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज राजकुमार रणजीत सिंह के नाम से रखा गया है,
उन्होंने कभी भी भारत की तरफ़ से कोई मैच नहीं खेला। रणजीत सिंह प्रथम टेस्ट मैच
खिलाड़ी थे। रणजीत सिंह भारत के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में से एक थे। वह एक भारतीय
राजकुमार थे जिन्हें प्रथम भारतीय खिलाड़ी होने का श्रेय भी है।
रणजीत सिंह
का जन्म पश्चिमी भारत के काठियावाड़ प्रान्त के एक छोटे से गांव सरोदर में हुआ था।
वह एक धनी परिवार में जन्मे थे। 1888
में
वह ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज में
दाखिला लेने ब्रिटेन चले गए। वहीं पर पढ़ते हुए फाइनल वर्ष में वह क्रिकेट ‘ब्लू’ में
शामिल हो गए। वहाँ उन्होंने अपना नाम बदलकर (निक नेम) ‘स्मिथ’ कर
लिया था और उसी नाम से पहचाने जाने लगे थे। बाद में उन्हें कर्नल के नाम से भी
जाना जाता था। उन्हें कर्नल हिज हाइनेस श्री सर रणजीत सिंह जी विभाजी कहकर
सम्बोधित किया जाता था। वह नवानगर के महाराजा जैम साहब के नाम से भी जाने जाते थे।
रणजीत सिंह
के क्रिकेट सफ़र पर नजर डाले तो उन्होंने 1896 से लेकर 1902 के
बीच पंद्रह टेस्ट मैच खेले और यह सब इंग्लैड के तरफ से आंस्ट्रेलिया के विरुद्ध ही
खेले गए। उनका टैस्ट मैच का औसत 44.95 और प्रथम
श्रेणी मैचों का औसत 56.37 था, जो आज के
लिहाज से नहीं। पर उस दौर में सबसे बेहतरीन औसत माना जाता है। उनके बल्लेबाजी से
इस आधार पर वाकिफ हुआ जा सकता है कि 1899 व 1900 इन
दो वर्षों में तीन-तीन हजार से अधिक रन बनाए। उन्होंने पांच बार दौ सौ से अधिक
रनों का योगदान दिया। 1896 में इंग्लैंड
की ओर से उन्होंने पहला टैस्ट मैच खेला। इस प्रकार वह क्रिकेट टैस्ट मैच खेलने
वाले प्रथम भारतीय बन गए। 1896 में यह
टैस्ट मैच रणजीत सिंह ने 16 से 18 जुलाई के बीच मान्चेस्टर में खेला। उन्होंने
यह मैच आस्ट्रेलिया के विरुद्ध इंग्लैड की ओर से खेला। उन्होंने अपने इस पहले
टैस्ट में 62 तथा 154 रन बनाए और आउट नहीं हुए। इस प्रकार वह डब्लू
जी.ग्रेस के बाद दूसरे ऐसे खिलाड़ी बन गए जिन्होंने
इंग्लैड के लिए खेलते हुए अपने डेबू मैच(पहले मैच) में शतक जमाया। रणजीत सिंह देश
के अत्यन्त कुशल व तेज बल्लेबाज थे। उन्होंने 1895 से 1905 के बीच टैस्ट मैच खेले। 1897-98 में
आस्ट्रेलिया दौर पर उन्होंने पूरे दौर में (इंग्लैड में ससेक्स में) 1000 रन
बनाए। (1899 से 1900 के
बीच उन्होंने 3000 से अधिक रन बनाए)। वे 1899 से 1903 तक ससेक्स
टीम के कप्तान भी रहे। उस समय रणजीत सिंह का नाम सकेक्स पहचाना था। क्रिकेट के
जानकार बोरिया मजमूदार उनके बारे में बताते है कि- एक पुरानी कहावत है कि क्रिकेट
अनिश्चितताओं का खेल है, लेकिन कभी-कभी किसी क्रिकेटर की जिंदगी इस रोचक खेल से
ज्यादा रोचक हो जाए, तो उसे क्या कहा जाएगा? रणजीत सिंह के बारे में मजेदार बात यह
है कि 1890 वह समय था
जब वे पूरी तरह कर्ज में डूबे हुए थे। जहां तक कि अपने दर्जी, बार टेंडर, किराये
वाला और न्यूज एजेंट और कैम्बिज के होटल मालिकों तक से पैसा उधार लेने में गुरेज
नहीं करते थे। एक तरफ़ वह क्रिकेट के रनों का पहाड़ बना रहे थे दूसरे तरफ़ दोस्तेओं
के घर रहने और ज़बर्दस्ती खाने को ख़ुद को इसलिए आमंत्रित करते थे, ताकि उन्हें भूखा
न सोना पड़े।
1904 में रणजीत सिंह भारत लौट आए क्योंकि उन पर
अनेक घरेलू जिम्मेदारियां थी। यहां उन्होंने केवल दो वर्ष पूरी तरह क्रिकेट खेली। 1908 में तथा 1912 में, दोनों
बार 1000 से अधिक रन बनाए। बाद में किसी की गलत सलाह पर
वह ससेक्स वापस गए। यह 1920 की बात है।
उन्होंने तीन बार खेलने का प्रयास किया। परंतु वह 48 वर्ष के हो चुके थे, उनका वजन बढ़ चुका था और वह एक शूटिंग
दुर्घटना में अपनी एक आंख गंवा चुके थे। अत: अंतिम बार खेलने वक्त वह 39 रन
ही बना सके। सर नेविल कार्डस ने रणजीत सिंह के बारे में लिखा- “जब रणजीत सिंह ने
क्रिकेट छोड़ दिया, खेल से सारी चमक और रौनक ही हमेशा के लिए गायब हो गई।” 1897 में रणजीत सिंह ने एक पुस्तक लिखी- “द जुबली
आंफ क्रिकेट”। इस पुस्तक को क्रिकेट की दुनिया में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण रचना
माना जाता है। बाद में रणजीत सिंह के भतीजे के.एस.दिलीप सिंह ने भी इंग्लैड के लिए
क्रिकेट खेला। रणजीत सिह क्रिकेट की दुनिया के जीनियस थे जिन्होंने बल्लेबाजी की
कला को एक नए आयाम दिए। उसने पूर्व क्रिकेट खिलाड़ फ्रंट फुट पर ही खेलते थे
उन्होंने बैक फुट पर भी शानदार स्ट्रोक खेले और नए तरीके से कट लगाने की विधि से
खेला। रणजीत सिंह का 2 अप्रैल 1933 को
देहांत हो गया। भारत का प्रथम दर्जे का रणजी मैच सर रणजीत सिंह के नाम पर उन्हें
सम्मान देने के लिए ही रखा गया।
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