मां ! तूने ये क्या कर दिया। -प्रत्युष प्रशांत

मां! तूने ये क्या कर दिया, अपने हिस्से का डर मेरे अंदर भर दिया।



कालेज के दिनों में महिला साथी की यह कविता स्कूलों और घरों में बच्चों के उस समाजीकरण को तोड़ने की वकालत करता है, जो बालपन में बच्चों के दिलो-दिमाग में कई बातों का डर पैदा कर देता है। मौजूदा समय में बच्चों के साथ घर और बाहर हो रही घटनाएं यह स्थापित करती है कि बच्चों के समाजीकरण में हमको कुछ नए चैप्टर को जोड़ना ही पड़ेगा, सरकार और सामाजिक संस्थाओं की जिम्मेदारी तो उसके बाद आती है। वैसे भी सरकारे सेक्स एजुकेशन देने के बजाए संस्कार सिखाने पर अधिक जोर देती रही है।

रोजाना बदलती हुई आस-पास की हमारी दुनिया समाज में आज कुछ विषय  हमारे दायरे में इसतरह के है जिसे परिवार के वरिष्ठ सदस्य अपने बच्चों से बात करने में संकोच करते है। जब बच्चे सवाल करते है तो डांटकर या झिझककर तू क्या करेगा ये जान कर, अभी ये जानने के लिए तुम बहुत छोटे हो कह दिया जाता है। परिवार के सदस्य बताते नहीं और बड़े-बड़े होडिग्स, फिल्मों, टीवी सीरियल, मोबाइलों और इंटरनेट के साथ-साथ आभासी दुनिया ने इन सवालों के जवाब और अधिक उलझा देते है क्योंकि बड़े ही क्रिएटिव अंदाज में सही जवाब खो जाते है। जबकि सवाल हर रोज कई तरह से दरवाजे पर दस्तक देते रहते है, कभी विज्ञापनों के जरिए तो कभी डबल मीनिग संवादों या गानों के जरिए। इसतरह बच्चों का मन सैक्सुअल हो जाता है। धीरे-धीरे बच्चों की सारी जिज्ञासा ही सेक्स से बंध जाती है क्यों वही उत्तर उसे नहीं मिलते। अगर हम उसका उत्तर दे देते है तो बच्चा उससे मुक्त हो जाता है। जिसको हम जितना छिपाते हैं वह उतना आकर्षक हो जाता है। शिक्षकों को, अभिभावकों को सेक्स के संबंध में उतना ही सरल होना जरूरी है, जितना किसी और चीज के संबंध में।
बच्चों को सेक्स के बारे में बताने में अभिभावक के मन में कई भ्रांति रहती है। जाहिर है जीवन जीने के तरीकों में सेक्स और उसके विभिन्न पक्षों पर खुलकर बात करना, वो भी परिवार के सदस्यों के साथ समान्य नहीं है। इसलिए कहानी, फिल्मों, सस्ता साहित्य या हाल के बेव सीरीज के सहारे जो भी बातें दिमाग में जगह बना लेती है, वो सही जवाब के तरफ ले जाने के दिशा में रास्ते में ही अंधेरे सुरंग में छोड़ देती है। से में अभिभावकों की ही यह जिम्मेदारी बनती है कि वे बच्चों के प्रश्नों का सही व सरल दंग से जवाब दें, जिससे उसे समझ आ जाएं। बच्चे जब अपने आस पास चीजों को देखते हैं तो उनसे संबंधित उनके मन में कई सारे सवाल होते है जिसे वो अपने माता-पिता से पूछते है। जहां तक स्कूल में सेक्स की पढ़ाई की बात है तो वो अभी भी नाम मात्र की होती है जिससे स्थिति टाइम बम जैसी है जिसकी टिक-टिक हमेशा सुनाई देती है।
जाहिर है सेक्स पर बात करना सहज विषय नहीं है इसके बारे में बच्चों से बात करने के पहले अभिभावकों को काफी सोचना पड़ता है, लेकिन अगर अभिभावक बच्चों को इसके बारे में नहीं बताएंगे तो बच्चों कहीं ओर से इसकी जानकारी हासिल करने की कोशिश करेंगे जो खतरनाक साबित हो सकती है बच्चों के लिए। परिणामत: बच्चे के साथ बैड टच की कोशिश हो तो उसे सा करने से मना नहीं कर पाते है। कई बार बच्चों को प्यार या दुलारने करने वाले लोग चाहे वो कोई भी हो जरूरी नहीं है कि उसकी नीयत अच्छी हो। इस बात को अभिभावकों को समझने की जरूरत है और बच्चों को समझाने की भी जरूरत है। अभिभावकों को बच्चों के साथ कौन सा टच सही है और कौन सा गलत इसको समझाने की जरूरत है। क्योंकि घर के बाद बच्चे जहां अधिक समय बीताते है वहां से इस तरह की घटनाएं घट रही है। कई  मामलों में बच्चों के बताने के बाद भी लोकलाज के डर से अभिभावक चुप्पी साध लेते है, उनकी ये चुप्पी बच्चों के लिए खतरनाक हो जाता है।
परिवार में अभिभावकों को इन विषयों पर बच्चों को डाटने, लोकलाज के डर से खामोश और रिमोट के बटन को बदलने के बजाए, एक नया तरीका या महौल बनाने की जरूरत है। क्योंकि परिवार ही जीवन की प्राथमिक पाठशाला है यह बात रटाने के बजाए परिवार को अपनी जिम्मेदारी लेने की जरूरत है, न की अगल-बगल झांकने की।


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