कंगना कि आवाज़ बांलीवुड की चुप्पियों का कोरस है

आभार..अविनाश दास का लेख जो मूलतः www.jattdisite.com में प्रकाशित हुआ है....
एक थी मीना कुमारी। जितनी प्रतिभा उतनी ही त्रासदी। दिल सीसे सा था, छोटे छोटे टुकड़ों में टूटता रहा। शराब और शायरी ने उनके दर्द को सहानुभूति का सहारा दिया। उनकी एक ग़ज़ल है, आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता, जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता; दिल तोड़ दिया उसने ये कह के निगाहों से, पत्थर से जो टकराये वो जाम नहीं होता। मधुबाला भी मोहब्बत में कुचली गयीं और बीमार होकर चल बसीं। परवीन बाॅबी डिप्रेशन के अंधे कुएं में लंबे समय तक अकेली पड़ी रहीं। आख़िरकार ज़िंदगी को बाय बाय कह दिया। दिव्या भारती अपनी बिल्डिंग के पांचवें फ्लोर से कूद गयीं और ज़िया ख़ान ने पंखे से खुद को लटका लिया। सिल्क स्मिता और प्रिया राजवंश का किस्सा भी कुछ कुछ एेसा ही है। इन नामों के अलावा सिनेमा की कई स्त्रियों ने अपने दर्द को मृत्यु के रूप में अभिव्यक्त किया। इन दिनों जब भी मैं कंगना रनौत को कहीं भी बोलते हुए सुनता हूं, तो लगता है वह इन सबकी मौत का बदला ले रही हैं। कंगना रनौत का बोलना बाॅलीवुड में रिश्तों से जुड़ी विसंगतियों का दस्तावेजीकरण है।
परिवारवाद पर जब कंगना ने बोला, तो बहुत सारे लोग इस तर्क के साथ सामने आये कि डाॅक्टर का बेटा डाॅक्टर, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बन सकता है तो एक फिल्मी आदमी का बेटा एक्टर या डायरेक्टर क्यों नहीं बन सकता! गोया स्वतंत्र प्रतिभाओं का परिवारवाद की बलिवेदी पर चढ़ जाना जायज़ हो। कंगना ने जब हृतिक रोशन के साथ अपने प्रेम पर बोला, तो लोगों ने कहा कि एक शादीशुदा मर्द से प्रेम करने की ज़रूरत क्या थी! गोया वह दुनिया की पहली स्त्री हो, जिसने किसी शादीशुदा मर्द से प्रेम किया हो। कंगना अगर अपने हाउस अरेस्ट की बात करती हैं, तो लोग उस पर टूट पड़ते हैं कि यह उसका अपना चयन था। गोया किसी पर विश्वास कर लेने भर से उसे अपनी गुलामी सौंप देना ही अंतिम न्याय हो। पहले भी और जब भी बोलने का मौक़ा मिलता है, कंगना अपने जीवन से जुड़े बहुत सारे असहज प्रसंगों का पिटारा एक साथ खोल देती हैं। बाॅलीवुड हर बार तिलमिला उठता है, क्योंकि उसे गवारा नहीं कि उसके आकर्षक आवरण की चादर कोई इस तरह उघाड़े। सबको मालूम है कि इस आवरण के पीछे कितनी साज़िश और कितना कीचड़ है।
कंगना के बोलने से हड़बड़ाये हुए लोगों की फुसफुसाहटों में यह बात भी शामिल है कि स्त्रियां अपनी देह का इस्तेमाल करके कामयाबी की सीढ़ी चढ़ती है और काम निकल जाने के बाद उसी देह की कमान से ज़हरीले तीर छोड़ कर माहौल को विषाक्त करती है। इस बात को लेकर मेरी टेक ये है कि स्त्री की देह को हमने वस्तु बना दिया है और उसे गाहे-बगाहे बेचने की कोशिश करते हैं। लेकिन अगर स्त्री ख़ुद अपनी कामयाबी के लिए अपनी सीमित या असीमित प्रतिभा के साथ अपनी देह का इस्तेमाल करती है, तो यह हमें मंज़ूर नहीं होता। क्यों भाई? क्या स्त्री की देह के इस्तेमाल का अधिकार सिर्फ पुरुषों को ही है? क्या स्त्रियां अपनी देह का इस्तेमाल ख़ुद अपने लिए नहीं कर सकतीं? दरअसल पुरुषों को स्त्रियों की मर्ज़ी स्वीकार करने में ही दिक्कत है, इसलिए कंगना की बातों से असहज हालात पैदा हो रहे हैं। मेरी फिल्म अनारकली आॅफ आरा का निचोड़ ही है कि उस स्त्री को भी सौवें पुरुष के साथ सोने से इनकार करने का हक़ है, जो 99 पुरुषों के साथ सो चुकी हो।
हमारे मुल्क में जब तक फरियादी अदालत का दरवाज़ा न खटखटाये, उसका न्याय निर्जन एकांत में सड़ रहा होता है। लेकिन कई मामलों में अदालत स्वत: संज्ञान लेती है। कंगना जब इतनी सारी बातें बोल रही हैं और सार्वजनिक रूप से बोल रही हैं और जिसमें दमन के भयावह तथ्य सामने आ रहे हैं, अदालत को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। संशय के बादल तभी छंटेंगे और दूध का दूध और पानी का पानी तभी होगा। कंगना रनौत भी यही चाहती है, जैसा कि उसने पत्रकार रजत शर्मा के मशहूर टीवी शो आपकी अदालत में कहा।

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