BHU के रावणों को जलाने के लिए लंका पर डटी लड़कियां- प्रत्युष प्रशांत

देश के दो महान विश्वविद्यालय, JNU और BHU इस हफ्ते दोनों ही ख़बरों की सुर्खियों में है। JNU अपने परिसर में छात्राओं और महिलाओं के शोषण के अधिकार के लिए बनी संस्था जीएस-कैश के जगह नई थोपी गई संस्था आईसीसी को लेकर बनी अनिश्चतता के लिए ख़बरों में है तो BHU की लड़कियां परिसर में अपनी सुरक्षा के विषयों पर लगातार शिकायतों के बाद हो रही अनदेखी को लेकर लड़कियों के विरोधों को लेकर ख़बरों में है। BHU में लड़कियों के छेड़छाड़ को लेकर लड़कियों का मेन गेट पर जमा होकर विरोध प्रदर्शन करना और बीते दिनों की घटनाएं ये बताती है कि BHU का परिसर जो अकादमिक गतिविधियों और वाद-विवाद की बेहद उम्दा जगह है वहां सब कुछ समान्य नहीं है। जिसका दावा BHU प्रशासन के द्दारा किया जा रहा है कि स्थिति समान्य है ऐसा नहीं है कि छात्राओं के शिकायत पर ध्यान नहीं दिया जाता है या लड़कियों के शिकायत पर उनकी मौजूदगी को ही जिम्मेदार बता कर उनको डांटकर चुप करा दिया जाता है।
BHU के परिसर में लड़कों की छेड़कानी, हास्टल के सामने आकर अपशब्द बोलना, कभी पत्थर फेंकना और कभी मास्टरबेट करना, बेहद शर्मनाक स्थिति है, यह बताते है कि प्रशासन लड़कियों के शिकायत पर चुप्पी साधे रहता है, तभी इन लड़कों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। नहीं तो भला सुरक्षाकर्मियों के मौजूदगी में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटना होते देखते रहना और लड़कियों के सुरक्षा में आगे न आना, सिद्ध करता है कि प्रशासन इन गतिविधियों पर जानबूझ कर खामोश है या लड़कियों के शिकायतें फाइलों में जमा भर कर ली जाती है।
बीते दिनों BHU हास्टल में लड़कियों के सुरक्षा के नाम पर लैंगिक भेदभाव करते हुए कई बेजा नियमों के याचिका पर शीर्ष न्यायालय ने सुनवाई के लिए सहमति जताई है। इसके कुछ दिन बाद BHU बीए आंनर्स की पहले साल की एक छात्रा को उसके समलैंगिंक झुकाव के चलते हास्टल से निष्कासित कर देने का मामला भी सामने आ चुका है। जो इस सत्य को भी सामने लाता है कि BHU प्रशासन के साथ-साथ परिसर भी जेंडर समानता और सेसिटाइजेशन के ककहरे को भी नहीं समझ सका है, अकादमिक शोधों के मामले में भले ही देश की अव्वल संस्था जरूर रहा है।
BHU परिसर में हलिया लड़कियों के छेड़छाड़ के मामला जिसको लेकर कैंपस कि लड़कियां अपनी सुरक्षा को लेकर शुक्रवार सुबह छह बजे से विश्वविद्यालय के मेन गेट पर प्रदर्शन कर रही हैं, ये हाल उस सूबे की लड़कियों की सूरक्षा का सूरते-हाल बयां करता है जिनको छेड़छाड़ से बचाने के लिए मौजूदा राज्य सरकार ने रोमियों स्क्वांड जोर-शोर से बनाया गया था। ये हाल सूबे के उस शहर का भी है जहां का सांसद देश का प्रधानमंत्री है, जिन्होंने यह नारा दिया है “बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओ”। पर सवाल यही है जो विरोध कर रही लड़कियों का शोलगन भी है “बेटी बचेगी, तभी तो पढ़ेगी।”
विश्वविद्यालय परिसरों में फिर चाहे वो JNU या BHU ही क्यों न हो, DU हो या जामिया महिलाओं के सुरक्षा का सवाल तमाम विश्वविद्यालय परिसरों में उठते रहे है और लड़कियों को परेशान करते रहे है। तमाम विश्वविद्यालय प्रशासनों का इन समस्याओं से निपटने का तरीका इतना अव्यावहारिक है कि लड़कियों को “पिजड़ा तोड़ ” जैसी मुहिम का हिस्सा बनना पड़ता है जो समाज और उसके समाजीकरण पर थप्पड़ रसीद करता है, तुम अगर ऐसे ही हो, तो ऐसे हो ही क्यों? वक्त से साथ लड़कियों के साथ तमाम अव्यावहारिक मामले जांच कमेटियों और न्याय के  दहलीज पर दम भरता पसीने पोसता रहता है और नए मामले अपनी उपस्थिति को जाहिर करने के लिए जगह खोजता है।
जब हाल के दशकों में आधी आबादी ने पढ़ने लिखने ही नहीं सफलता के कई मापदंडों पर अपनी धमाकेदार उपलब्धियों को दर्ज किया है तो नीति निमार्ताओं ने इनके सुरक्षा के लिए माकूल माहौल का निर्माण क्यों नहीं कर सकी है और समाज ने भी अपने समाजीकरण में पुरुषों को संवेदनसील और व्यावहारिक बनाने के प्रयास में क्यों चूक गया? जाहिर है हम और हमारी व्यवस्था समाज की विकृति को समय रहने पकड़ पाने में असफल रहे है इसलिए इस विकृति से ग्रस्त लोग लड़कियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के साथ-साथ देश को भी शर्मसार करते है। समय रहते अगर हमने इसका समाधान नहीं खोजा तो जिन युवाओं के क्षमता का दंभ देश कई मंचों पर भरता है वो देश को शर्मसार ही करेगा।

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