पहलू जैसे लोग मारे नहीं जाते वो तो मर जाते हैं -प्रत्युष प्रशांत
फिल्म “मेरा साया” का गाना “आपके पहलू में आकर रो दिए” पहलू खान के इंसाफ नहीं मिल पाने पर फिट बैठता
है “कानून के पहलू में आकर रो
दिए”।
पहलू खान के मामले में
सभी आरोपियों के बरी होने जाने से सारा देश अधिक अंचभित और हैरान नहीं है। क्योंकि
इस तरह की उम्मीद कमोबेश सबों को थी कि इस मामले में इसी तरह से पर्दा गिरेगा।
परंतु, हकीकत यह भी है कि इस मामले में उन घिनौनी चीजों से पर्दा उठा भी दिया जिसे
बड़े जतन से छुपा दिया जाता है। किसी भी मामले में गवाहों के समूह कमजोर बनाकर
आरोपीयों को रिहा कराने की कीमत उन्मादी लोगों का दबाव भी हो सकता है ये मौजूदा
मामले की नई नज़ीर है।
भारतीय आवाम की याददाश्त
काफी कमजोर है इसलिए याद दिलाने के लिए बताना जरूरी है कि राजस्थान के अलवर से
गाड़ियों में गाय लेकर हरियाणा आ रहे पहलू खान और उसके साथियों पर कथित गौ रक्षकों
ने एक अप्रैल को बहरोड़ में मारपीट की थी। जिसमें घायल पहलू खान ने तीन अप्रैल को
दम तोड़ दिया था। इस मामले में रोचक पहलू यह सामने आया कि राजस्थान पुलिस ने पहलू
खान के हत्या में उन छह आरोपियों को क्लीन चिट दे दी है, जिनका नाम उन्होंने मौत
से पहले पुलिस को बताया था। पहलू खान ने अपने बयान में हमला करने वालों में हुकुम
चंद, नविन शर्मा, जगमात यादव, ओम प्रकाश, सुधीर और राहुल सैनी का नाम लिया था।
पुलिस ने इन सबों को अपनी जांच में निर्दोष पाया है और छह आरोपियों पर घोषित किया
गया 5 हजार रूपय का ईनाम वापस ले लिया है। पुलिस ने
जांच में आरोपियों के मोबाइल लोकेशन को आधार बनाया है कि घटना के समय सभी घटना
स्थल से चार किलोमीटर दूर थे। हरियाणा के नूह के रहनेवाले पहलू खान डेयरी में काम
करते थे अप्रैल में जयपुर से गाय लेकर अपनी गांव जा रहे थे। पहलू खान के हत्या के
बाद गौरक्षकों की हिंसा की बहसों और चौतरफा राजनीतिक दबाव के बाद जांच शुरू की गई,
और अब पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट भी दे दी है।
खुले आसमान के नीचे भीड़
भरे सड़क में कोई हत्या “मर्डर मिस्ट्री” कैसे बनाई जाती है, पहलू खान का मामला इसकी ताजा नज़ीर है।
हालांकि यह अपने आप में कोई पहला मामला नहीं है। जैसे कभी जेसिका लाल के लिए कहा
गया था, वैसे ही पहलू खां को भी किसी ने नहीं मारा। अब इस तरह के कई मामलों में भी
इस तरह के रिपोर्ट आनी ही बाकी है।
मौजूदा मामले में अब सारी
बातें ऊल-जलूल-फिजूल हैं। खुले आसमान में कई लोगों के सामने पहलू खान पीटा गया।
अगर डर या किसी दबाव के आगे चश्मदीद गवाह सामने आने को तैयार नहीं है, तो
परिस्थितिपरक साक्ष्यों का उपयोग क्यों नहीं किया गया? यह कहना भी समझ में नहीं
आता है कि हत्या के गवाह पेश न होने से आरोप सिद्ध करना असंभव है। इस आधार पर तो
हर हत्यारा निर्दोष बना रह सकता है। चश्मदीन गवाही के अभाव या साक्ष्य नहीं जुटा
पाने के स्थिति में हरा आरोपी मुक्त होते रहेगे। जब तक नाकारा और भष्ट तफतीश के
लिए जिम्मेदार पुलिस दंडित नहीं होती और न्याय व्यवस्था इस मामले में संगीन तबीयत
पर ध्यान नहीं देगी पहलू खान जैसे सभी मामलों में कातिल तो रहेगे ही पर सवाल का जवाब वही होगा
....कानून के पहलू में आकर रो दिए।
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